"अंतर्राष्ट्रीय परिवार दिवस" लाइव के अवसर पर
"पेपर विफ्फ" पर प्रेषित प्रविष्टि
दिनांक-14-5-2022
स्वरचित कविता-
शीर्षक-"परिवार के साथ"
आओ तुमको बतलाती हूं -
एक पते की बात
कितना अच्छा लगता है जी-
परिवार के साथ.
चहल-पहल,सुख दुःख की बातें-
चलती हैं दिन- रात.
कितना....
बड़ों का आदर,सेवाभाव -
लाड़-प्यार की ही सौगात,
नोंक-झोंक खट्टी मीठी सी-
खुशी, सुकूं ,तीखे आघात.
कितना अच्छा....
आओ तुमको...
शैशव खेले,हंसे जवानी-
प्रौढ़ों के उलझे जज्बात,
जीवन-संध्या की छाया में-
मिलकर दें पीड़ा को मात.
कितना...
दादी-दादू,मां-बाबू जी-
ताई-ताऊ,चाचा-चाची,
फूफा-बुआ,भाई-भतीजे-
मीठे रिश्तों की आबादी.
परिवार में, डाल चल रहे-
सब हाथों में हाथ।
कितना...
एकल परिवार का अब तो -
चलन बढ़ रहा जोरों पर,
मिलकर रहते हैं कुटुम्ब में-
रहे भरोसा औरों पर.
रिश्तों के सरवर में रहकर-
खिलते पारिजात.
प्यार झलकता है इनमें-
सुरभित लगती हर बात.
कितना...
तीज-त्योहार, नमाज, कीर्तन-
परिवार में होते हैं,
संस्कार के बीज यही तो-
हर बालक में बोते हैं,
घर ही हैं बालक की पहली-
शाला और जमात.
कितना ...
अब तो मुझको पेपर विफ्फ" भी-
परिवार सा लगता है,
कार्यक्रमों का पहिया इसका-
नियत निरंतर चलता है,
तालिब,चारू,श्वेता,पाखी-
सबसे होती बात
खुशियां बांट रहे हैं सारे-
मिलकर जी दिन रात
आओ तुमको...
कितना...
स्वरचित कविता-
डा. अंजु लता सिंह'प्रियम'
नई दिल्ली
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