स्वरचित कहानी-
शीर्षक-" नौबत न आए तलाक की"
आखिरकार समीर और पायल तलाक लेकर अलग हो ही गए।मम्मी पापा की स्वीकृति लिये बिना ही उन्होंने लव-मैरिज की थी। शादी के बाद पायल की फैशनपरस्ती,उसकी एकल परिवार बसाने की मंशा,हमेशा अपनी मर्जी से ही चलना,पार्टियों में घूमना,ऑनलाइन शॉपिंग में अंधाधुंध पैसा खर्च करना,ससुराल जैसी संस्था का मखौल उड़ाना और उच्छशृंखलता से भरी आज़ादी का अतिरेक समीर को कुछ ज्यादा ही खटकने लगा था,उसे उस पर बात-बात में टोका-टाकी करके और पाबंदी लगाकर ही समीर के पुरूषत्व को संतुष्टि मिलती।मानसिक उत्पीड़न, स्वाभिमान और अंह की तकरार जब हद से पार हो गई तो दोनों ने अलग होने का निर्णय ले लिया। काश! ऐसा हो पाता,कि पायल अपने इस बहकते कदमों को रोक पाती।धीरे-धीरे उसके हाथ से अब सब कुछ रेत की तरह फिसल चुका था।
टैक्सी गाड़ी दरवाज़े पर आ चुकी थी.....
-जनवरी की भीषण ठंडी रात में,पत्नी को धक्के मारते हुए घर से बाहर निकाल देना पति का अक्षम्य अपराध ही तो था।शराब के नशे में धुत्त समीर ने आज तो सभ्यता की सीमा-रेखा ही पार कर दी।
-पति से ज्यादा पढ़ी लिखी,उससे दुगुना वेतन अर्जित करने वाली,शांत और गंभीर स्वभावी,सास ससुर की इच्छापूर्ति के लिये इतनी जल्दी मां बनने के लिये राजी हो जाना...सब उसके सैक्रीफाइज़ ही तो हैं।फिर भी...
-इतना अपमान?...उफ्फ ..
सीढ़ियों पर बैठकर रात बिताना उसे असंभव सा लग रहा था।एक दो बार दरवाजा थपथपाकर अपने क्रोध और अहं को निर्मूल करने की चेष्टा में और भी बेइज्जत हुई।
-"काम की न काज की,सौ मन आनाज की"।महारानी को बिस्तर पर बैठे बैठे सब चाहिये।सास बनाए और ये खाए।हुंह..छोड़ इस कलमुंही को...ऐसे करोड़पति लड़कियों के रिश्ते आए थे,तब तो पागल हुआ पड़ा था,इससे ही करेगा कोर्टमैरिज।अब भुगत...
भीतर से सुनाई देते सासु जी के तीखे कटु बोल उसके कोमल ह्रदय को चीर रहे थे।
बेबस होकर पायल ने प्लाजो की जेब से मोबाइल निकाला,जेब से दो दो हजार के दस नोट टटोलने संभाले और आनन फानन में कैब बुला ली।हाथ-घड़ी की ओर देखा-रात के सवा नौ बजे थे।
उसने टैक्सी क्लिनिक की ओर मुड़वा ली।
-कल का अपाॅयमैंट ले लेती हूँ। शनिवार,रविवार भी पड़ रहे हैं।नहीं चाहिये ऐसे जालिम पति की औलाद।सपनों में आग लगा डाली मेरे।
सोचते हुए उसकी आंखों से निरंतर आंसू बह रहे थे।
फोन पर अपनी अंतरंग सखि पारुल से सारी आपबीती बताकर मन हल्का कर लिया था उसने।
जैसे ही ड्राइवर को पैसे देने के लिये उसने हाथ बढ़ाया ,उधर से आवाज आई-रहने दो पायल!तुमसे पैसे लूंगा भला?इतने वर्षों बाद तुम्हें देख रहा हूँ आज।
-अरे!कुशल!तुम?
हर्षमिश्रित सुखद आश्चर्य से वह बोली।
मगर यह क्या?तुम इस तरह...ये कैब के ड्राइवर?
-कोरोना में पापा,मम्मी,बहनऔर पत्नी सभी मुझे छोड़कर चले गए।मुझे
जाॅब छोड़कर दुबई से वापस दिल्ली आना पड़ा।पापा की टैक्सी है यह।पार्ट टाइम कर रहा हूँ यह काम।कंपनी से फिरसे बुलावा आया है।बस अगले हफ्ते ही पहुंचना है फिरसे दुबई।
-फोन पर सहेली से की गई तुम्हारी सब बातें सुन ली हैं मैंने।परेशान मत होओ।एक बार बस यह जानना चाहता था,कि क्या तलाक की कार्रवाई के दौरान मिले छै:महीनों में भी समझौते की कोई गुंजाइश नहीं दिखाई दी तुम दोनों को?
-माॅम डैड जबरन वापस छोड़कर गए थे मुझे ससुराल।मैंने काफी कोशिश भी की थी सुलह की,लेकिन कुछ बातें मेरी सोच से परे हो गई थीं।दम घुटने लगा था मेरा।
-जैसे-हमारे बैडरूम में रोज सबेरे पांच बजते ही इंग्लिश टाॅयलेट यूज करने के बहाने फादर इन लाॅ का आ धमकना,खाने में खूब मीन-मेख निकालना,अपशब्द बोलना,रात को देर से आने पर शक करना और भी बहुत कुछ था,जो मेरे लिये असह्य हो गया था।
-तुम सरकारी जाॅब में हो,स्वाभिमानी और सक्षम हो।बस अपना व्यवहार संतुलित रखना सीख लो,सहनशील बनो।मैं भी अपनी ओर से पति के कर्तव्यों का निर्वहन करने का भरपूर प्रयास करूँगा।मां के ममत्व वाले तन में ये सब खूबियां होनी भी चाहियें अब। आने वाले नन्हे मेहमान को मैं अपना नाम दूंगा। सदा तुम्हारी केयर करूंगा।मुझपर भरोसा हो,तो आओ बैठो!बोलो!क्या गाड़ी अपने घर की ओर मोड़ लें?
- हुं अं अं ..बुदबुदाते हुए पायल कुशल के सीने पर सिर रखकर फफकर रो पड़ी।उसकी मौन स्वीकृति पाकर कुशल ने उसका हाथ पकड़कर सामने वाली सीट पर अपने साथ बैठाते हुए जेब से रूमाल निकालकर उसे दिया और हंसकर बोला-याद है,काॅलेज में जब पहली बार मिले थे,तब गर्मी में तुम्हारी नकसीर छूट जाने पर मैंने तुम्हें अपना रूमाल दिया थाऔर तुमने कहा था-केयरिंग पर्सन मुझे बहुत पसंद हैं।
मीठी यादों में खोकर वह मुस्कुरा दी थी।
-अब तलाक की नौबत नहीं आनी चाहिये।
कुशल के जुमले पर पायल कान पकड़कर खिलखिलाकर हंस पड़ी।
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स्वरचित,मौलिक, अप्रकाशित एवंअप्रसारित लघुकथा-
रचयिता-डा.अंजु लता सिंह गहलौत, नई दिल्ली
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