मेरी मां

मां की तुलना असंभव है। मां संतति का जीवनाधार है। मेरी मां पूजनीय है।

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Dr. Anju Lata Singh 'Priyam'
Dr. Anju Lata Singh 'Priyam' 07 May, 2022 | 1 min read

स्वरचित कविता

शीर्षक - 'मेरी मां'.....


मेरी मां का नाम सरस्वती-

पूजें इन सांसों के तार,

ममतालु,प्यारी,पावन सी-

दिया मुझे ज्ञान-भंडार.




शैशव से ही मां को देखा-

कर्मठता के घेरे में,

सुबह सवेरे घिर जातीं नित-

वो रसोई के फेरे में.


ईश-स्तुति,तुलसी-पूजा-

उनके नियमित काम रहे,

ममतालु,स्नेहिल मां के-

मुख पर सबके नाम रहे.


चटर-पटर भोजन खाते थे-

मम्मी जी के हाथों का,

लुत्फ उठाते बैठ किचन में-

उनकी मीठी बातों का.


घर के कामों में जुट जातीं-

चेहरे पर मुस्कान लिये,

गर्वित होती उनकी हस्ती-

तन मन में सम्मान लिये.


मुंह धोती और फिर नहलातीं-

सुंदर वस्त्र हमें पहनातीं,

चोटी,पोनीटेल बनाकर-

लंच बॉक्स भी रोज लगातीं.


हाथ पकड़कर ले जाती थीं-

विद्यालय की ओर,

ऑरेंज वाली टाॅफी देकर-

गेट पर देतीं छोड़.



छुट्टी में जब भी जाते हम -

दादी जी के गाँव में,

सुख के ही अहसास हुए-

मां के पल्लू की छांव में.


पौ फटते ही मम्मी मेरी-

चक्की में आनाज पीसतीं,

ढेर गूंथकर आटा फिर वे-

चूल्हे धौरे हमें जीमतीं,


रोटी मट्ठा पूसी को-

पाखी को दाना-पानी दे-

झटपट छत से नीचे आतीं-

अर्ध्य रवि को जल का दे.



दादी की सेवा करतीं वो-

उनके दिनभर पैर दबातीं,

झाड़ू,चूल्हा,चौका,बर्तन-

सारे काम त्वरित निपटातीं


संयम,शील,सहनशक्ति की-

सचमुच वही मिसाल रहीं,

अब तक भी सारी रस्मों को-

घर में निभा संभाल रहीं,


कृशकाया है,मुरझाया मन-

भैया जाकर दूर बसे,

पापा को समझाती रहतीं-

रोएं मिलकर साथ हंसें,


मेरी मां ने संस्कार दे-

नैतिकता के सबक सिखाये,

इस छोटे से जीवन के सब-

गूढ़ रहस्य हमें बतलाये,


मेरी मां को नमन करूं मैं-

शत-शत कोटिक बार,

हर बालक को दिया नियति ने-

यह अनुपम उपहार.

   ______

स्वरचित, मौलिक, अप्रकाशित एवंअप्रसारित कविता

लेखिका-डा.अंजु लता सिंह गहलौत, नई दिल्ली

सर्वाधिकार सुरक्षित ©®


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Dr. Anju Lata Singh 'Priyam'

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