स्वरचित कविता
शीर्षक - 'मेरी मां'.....
मेरी मां का नाम सरस्वती-
पूजें इन सांसों के तार,
ममतालु,प्यारी,पावन सी-
दिया मुझे ज्ञान-भंडार.
शैशव से ही मां को देखा-
कर्मठता के घेरे में,
सुबह सवेरे घिर जातीं नित-
वो रसोई के फेरे में.
ईश-स्तुति,तुलसी-पूजा-
उनके नियमित काम रहे,
ममतालु,स्नेहिल मां के-
मुख पर सबके नाम रहे.
चटर-पटर भोजन खाते थे-
मम्मी जी के हाथों का,
लुत्फ उठाते बैठ किचन में-
उनकी मीठी बातों का.
घर के कामों में जुट जातीं-
चेहरे पर मुस्कान लिये,
गर्वित होती उनकी हस्ती-
तन मन में सम्मान लिये.
मुंह धोती और फिर नहलातीं-
सुंदर वस्त्र हमें पहनातीं,
चोटी,पोनीटेल बनाकर-
लंच बॉक्स भी रोज लगातीं.
हाथ पकड़कर ले जाती थीं-
विद्यालय की ओर,
ऑरेंज वाली टाॅफी देकर-
गेट पर देतीं छोड़.
छुट्टी में जब भी जाते हम -
दादी जी के गाँव में,
सुख के ही अहसास हुए-
मां के पल्लू की छांव में.
पौ फटते ही मम्मी मेरी-
चक्की में आनाज पीसतीं,
ढेर गूंथकर आटा फिर वे-
चूल्हे धौरे हमें जीमतीं,
रोटी मट्ठा पूसी को-
पाखी को दाना-पानी दे-
झटपट छत से नीचे आतीं-
अर्ध्य रवि को जल का दे.
दादी की सेवा करतीं वो-
उनके दिनभर पैर दबातीं,
झाड़ू,चूल्हा,चौका,बर्तन-
सारे काम त्वरित निपटातीं
संयम,शील,सहनशक्ति की-
सचमुच वही मिसाल रहीं,
अब तक भी सारी रस्मों को-
घर में निभा संभाल रहीं,
कृशकाया है,मुरझाया मन-
भैया जाकर दूर बसे,
पापा को समझाती रहतीं-
रोएं मिलकर साथ हंसें,
मेरी मां ने संस्कार दे-
नैतिकता के सबक सिखाये,
इस छोटे से जीवन के सब-
गूढ़ रहस्य हमें बतलाये,
मेरी मां को नमन करूं मैं-
शत-शत कोटिक बार,
हर बालक को दिया नियति ने-
यह अनुपम उपहार.
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स्वरचित, मौलिक, अप्रकाशित एवंअप्रसारित कविता
लेखिका-डा.अंजु लता सिंह गहलौत, नई दिल्ली
सर्वाधिकार सुरक्षित ©®
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