विषय-"पेपरविफ के पन्नों पर शब्दों की खेती"
स्वरचित कविता
शीर्षक-"शब्दों की खेती"
चिकने, चौकोर और कोरे-
मेरी डायरी के सुंदर पृष्ठ,
जब बो देती हूँ उन पर-
गहन,सार्थक,शब्द स्पष्ट.
झटपट हर लेते हैं मेरा कष्ट...
हल बन जाती है कलम-
खनन होती है मन की धरती,
भुरभुराते हैं भाव अनमोल -
करती हूँ शब्दों की खेती.
बनती सबकी चहेती...
पेपर पर उगते हैं -
सदाबहार वृंत,
पत्र-पत्रिकाएं-
किताबें और ग्रंथ.
जग में है उनकी महिमा अनंत...
पुरानी, नई पौध सबको ही भाए-
ह्रदय की जमीं पर उगे खूब ज्यादा,
'शब्दों की महिमा' तो होती असीमित-
पढ़ने का रहता है मन में इरादा.
विचार हों ऊंचे, जीवन हो सादा...
खजाना है अनमोल विद्या का इनमें-
संग्रह करो इनका, देखो भी जी-भर,
'गागर में सागर'भरा आखरों में-
सुरक्षित,समंजित रहते ये पेपर,
इनमें समाहित हैं ढेरों मधुर स्वर.
नमन है तुम्हें! पूज्य पेपर के तेवर....
______
स्वरचित-
डा.अंजु लता सिंह, नई दिल्ली
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