हाथों में सजती-
कान्हा की बंसी,
ग्वालों के बीच में -
नाचे यदुवंशी...
मिलने का सबब हुआ रे..
गरबा गजब हुआ रे.
संग-संग नाचें-
सखियां भी सारी,
मटकी ले राधा-
उतरीं अटारी...
हर्षित लो नभ हुआ रे..
गरबा गजब हुआ रे.
रास-रचैया-
कृष्ण-कन्हैया,
थिरके हैं जन-वन-
झूम रहीं गैया...
जीने का ढब हुआ रे..
गरबा गजब हुआ रे.
गोकुल के वासी-
रास रचाएं,
मुरलीधर कान्हा-
बंसी बजाएं...
मन बेसबब हुआ रे..
गरबा गजब हुआ रे.
पावन सा पर्व है-
सुंदर 'परंपरा',
भादों में अंगड़ाई-
लेने लगी धरा...
मन गुलकंद हुआ रे..
गरबा गजब हुआ रे.
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कवयित्री- डा. अंजु लता सिंह 'प्रियम', नई दिल्ली
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