#स्वरचित कविता
#शीर्षक-"नमन दो हजार इक्कीस:अभिनंदन दो हज़ार बाईस"
जा रहे हो रे दिसंबर!
रोए धरा,सिसके हैअंबर,
कहर ने कितने ही छीने-
याद आया हा! वो मंजर.
लाद लो अपना सामान-
करना है तुमको प्रस्थान,
विपदाएं सब संग ले लो-
देना खुशियों का वरदान.
बाल-वृंद और सब नारी-नर-
स्वागत करने को हैं तत्पर,
नई योजना,नव अरमान-
लागू करने होंगे सत्वर.
कर्मठता के फूल खिलाना-
दुष्टों को तुम धूल चटाना,
ज्ञान,मान,सम्मान बांटकर-
बन ठन कर लहराकर आना.
सर्दी लाना मन को भाए-
धूप कुनकुनी हमें लुभाए,
मूंगफली, रेवड़ी,गजक-
हर जन हर्षित होकर खाए.
रोगों का घेरा न घेरे-
जग में न लगाए फेरे,
सुख-समृद्धि थिरके जमीं पर-
मधुर-स्वर हों तेरे मेरे.
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स्वरचित-डा.अंजु लता सिंह, नई दिल्ली
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