बाल मजदूरी

बाल-श्रम समाज के लिये एक कलंक है। इसे हम सभी अपने सहयोग और सभ्यता से खत्म कर सकते हैं।

Originally published in hi
Reactions 0
399
Dr. Anju Lata Singh 'Priyam'
Dr. Anju Lata Singh 'Priyam' 12 Jun, 2022 | 1 min read

पेपर विफ्फ पर आयोजित

प्रतियोगिता हेतु मेरी प्रविष्टि-

दिनांक-12-6-2022

स्वरचित कविता

शीर्षक-"बाल मजदूरी"

1

बचपन प्यारा,बना बेचारा-

फिरता है यह मारा मारा,

हरदम रहता ,सुख से हटके-

करे मजदूरी, पथ पर भटके,

ईंट के भट्टे,कल कारखाने-

इनकी पीड़ा खूब बखानें,

सुख अधर में लटक रहा रे...

कैसा जुलम हुआ रे..

जग बेरहम हुआ रे .


2

मजदूरी का रोग है जारी

बच्चों पर यह बोझ है भारी

बेदर्दी मालिक मिल जाते

कोमल शैशव को भरमाते

इन बच्चों को कहते हैं भगवन

फिर क्यों दिखते हैं ये उन्मन?

तन मन भटक रहा रे

कैसा जुलम हुआ रे

जग बेरहम हुआ रे

3

खुशियों से ये कैसी दूरी?

मन ना भाए ये मजबूरी!

कुम्हलाई है कोमल काया-

तन पर लिपटा श्रम का साया,

सुख सब सिमट रहा रे

कैसा जुलम हुआ रे

जग बेरहम हुआ रे

4

देश की आशा,कैसी निराशा?

कब तक देंगे झूठी दिलासा?

कहीं पर छोटू मांझें बर्तन

नन्हे नट भी करते नर्तन

मन को खटक रहा रे

मन का दर्पण चटक रहा रे

कैसा जुलम हुआ रे

जग बेरहम हुआ रे


5

रद्दी ढोते नाजुक कंधे-

हम क्यों बनकर बैठे अंधे?

बचपन लौटा दें हम इनका-

ये भी तो हैं उसके बंदे,

चंचल शैशव खोया इनका-

बिखरा सुख का तिनका-तिनका,

सुख अधर में लटक रहा रे

दिल का दर्पण चटक रहा रे

कैसा जुलम हुआ रे

जग बेरहम हुआ रे


6

खेल खिलौने और गुब्बारे

बेच रहे बच्चे बेचारे

सड़कों पर दिख जाते अक्सर

बेबस और किस्मत के मारे

मन ये भटक रहा रे

मन का दर्पण चटक रहा रे

कैसा जुलम हुआ रे

जग बेरहम हुआ रे


7

निकलूं जब भी घर से बाहर

जालिम गरमी चुभती तन पर

फुटपाथों पर देखूँ शैशव

मजदूरी का बोझ है इन पर

क्रूर ह्रदय का मालिक इनका

रौब बड़ा रहता है जिनका

सिर वो पटक रहा रे

मन में खटक रहा रे

दिल ये धड़क रहा रे


8

अब भी कुछ हैं ऐसे सज्जन

कर लेते हैं परहित का प्रण

अपराधी को दंड दिलाकर

करते हैं दुविधा उन्मूलन

पासा पलट रहा रे

झंझट सुलझ रहा रे

मन भी मगन हुआ रे


9

देश का बचपन

हर्षित तन मन

लाचारी का

निकला है दम

सब कुछ बदल रहा रे

जीवन संभल रहा रे

पढ़ने को अब जाते बच्चे

भोले-भाले दिल के सच्चे

गम का गमन हुआ रे

सुरभित चमन हुआ रे



स्वरचित -स्वरचित,मौलिक, अप्रकाशितएवंअप्रसारित कविता

रचयिता-डा.अंजु लता सिंह गहलौत, नई दिल्ली

सर्वाधिकार सुरक्षित ©®
























0 likes

Published By

Dr. Anju Lata Singh 'Priyam'

anjugahlot

Comments

Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

  • Deepali sanotia · 2 years ago last edited 2 years ago

    अप्रतिम

Please Login or Create a free account to comment.