“ सावन की फुहार”
स्वरचित कविता
शीर्षक-“ सावन की फुहार”
मेघों ने बरसाया प्यार,आई लो बरखा-बहार
रिमझिम बूँदें लगीं नाचने,थिरक उठे सारे नर-नार
मोर,पपीहा,दादुर बोलें,कानों में मिसरी सी घोलें-
तृप्त हुई प्यासी धरती ,प्रकृति गा रही मंगलाचार.
धुले-धुले से पात हुए,तरुओं के निखरे गात हुए -
पुलकित प्रेमीजन चिहुँक रहे,भीगे-भीगे दिन-रात हुए,
गोरी झूले पर झूल रही,तन-मन की सुध-बुध भूल रही-
पहने हरियल चूड़ी-कंगन,मेंहदी से अंकित हाथ हुए.
तन पर पड़तीं शीतल फुहार,सपने जगाएं अनुपम हजार-
मस्ती के आलम में झूमें,कीट-पतंगों की क़तार,
सावन के गीत गूँजे चहुँ ओर,ढुलके आंसू पलकों की कोर-
विरहन से मिले मीत आकर ,पीर-शूल बनें पुष्पहार.
मेघों ने बरसाया प्यार,आ गई लो बरखा- बहार
तन पर अठखेली करें,सावन की नन्ही फुहार
रचयिता-डा.अंजु लता सिंह गहलौत
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