स्वरचित गीत
शीर्षक-"दशहरे का राज"
मेरा मन ये "मेरे मन से बोला"
मेरे मन से बोला...
बड़े ही इत्मीनान से
हम दशहरा मनाते बड़ी शान से..
हमें नाज है भारत-भू पर
वीर राम यहाँ जन्मे
मर्यादा पुरुषोत्तम राजा
बसे हैं हर तन मन में
सिया की खातिर, प्रभु ने की लड़ाई
लंकापति महान से
विजय पाकर सीता को लाए वे सम्मान से
खुशी के मारे ये तन मेरा डोला
मेरे मन ये मेरे मन से बोला...
धर्म मार्ग पर चलने का ही
बीड़ा सदा उठाया
कौशलेश ने हनुमान को भेज उन्हें समझाया
न वो समझा
किसी का इशारा
हुआ बेसहारा
व्यर्थ अभिमान से
पल में बदले,पल में मचले
दिल ये आशा तोला
मेरे मन ये मेरे मन से बोला...
मंदोदरी विभीषण ने भी
उन्हें खूब चेताया
पर रावण विद्वान बेचारा
कुछ
उसे लगने लगा अपने ही
पहने हैं नकली चोला
मेरे मन ये मेरे मन से बोला...
देख पराई वामा
गर कोई होए दीवाना
उसको देती आज भी दुनिया
क्रोधित होकर ताना
ऐसे दुष्ट को मारा रघु ने
कसौटी पर तोला
मैंने राज दशहरे का बोला
मेरे मन ये मेरे मन से बोला...
स्वरचित, मौलिक, अप्रकाशितएवंअप्रसारित गीत -
डा.अंजु लता सिंह गहलौत,नई दिल्ली
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