स्वरचित कविता
शीर्षक-"कुछ तो लोग कहेंगे"
गांव में ब्याही मेरी मम्मी-
पापा का संग साथ दिया,
सुगढ़ नार बनकर जीवन में-
हरदम प्रेरक काम किया.
दादी बाबा की इज्जत का-
ध्यान रखा दोनों ने खूब,
बेटी के पैदा होते ही-
जाने खुशी गई क्यों रूठ?
ताना दिया बड़े बाबा ने-
लक्ष्मी का अपमान किया,
मात-पिता के अरमानों पर-
सख्त कुठाराघात किया.
चलो चलेंगे दूर शहर में-
गुजर बस अब वही करेंगे,
ताना मारा है अपनों ने-
"कुछ ना कुछ तो लोग कहेंगे".
पापा की बातें सुन-सुन कर-
मम्मी मेरी हुईं उदास,
सोच रहीं,बेटी होने पर-
बातों में क्यों घुले खटास?
मम्मी ने अनुकरण किया-
पापा के अनुसार चलीं,
घर में तीन बहन हम आईं-
लाड़-प्यार से बढ़ी पलीं.
दो भाई फिर घर-आंगन की-
शोभा बने, मिलीं बधाई,
"आओ गांव में मिलने सबसे"
दादाजी की चिट्ठी आई.
कब तक दूर रहोगे हमसे-
कैसे हम यह दर्द सहेंगे?
इंतजार करती हैं आंखें-
सोचो तो,क्या लोग कहेंगे?
कैसा पक्षपात था जालिम-
विगत जमाना निर्मम था,
किसको,कब,क्या लोग कहेंगे?
सबसे बड़ा यही गम था.
निश-दिन जीवन चक्र चला-
उम्मीदों ने करवट बदली,
साक्षरता का ध्येय लिये फिर-
तीनों बेटी घर से निकलीं.
विकट बवाल मचा,बाबा ने-
इस निर्णय का किया विरोध
सुनकर हा! क्या लोग कहेंगे?
कहने लगे दिखाकर क्रोध.
पापा ने परवाह नहीं की-
मम्मी का भी बढ़ा हौसला,
कदम ना पीछे खींचे अपने-
अपनों को यह खूब खला.
शैशव से ही लिंग-भेद का-
कभी ना हमको भान हुआ,
लाड़-दुलार मिला समुचित ही-
पग-पग पर सम्मान हुआ.
प्रगति पंथ पर चलकर मैंने-
मां बाबा का नाम किया,
पढ़-लिखकर आगे बढ़कर ही
खुद भी सबको ज्ञान दिया.
पापा का कहना था,हरदम-
अपना पथ तुम स्वयं चुनो
कैसे,क्यों,क्या लोग कहेंगे?
उलझन का न जाल बुनो.
इस समाज में कुछ ना कुछ तो-
कहते रहते हैं वाचाल,
ध्यान न दो उनकी बातों पर
सदा चलो अपनी ही चाल.
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स्वरचित,मौलिक,अप्रकाशित एवंअप्रसारित कविता
रचनाकार- डा.अंजु लता सिंह गहलौत, नई दिल्ली
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