स्वरचित गीत
शीर्षक-"मौसम गजब हुआ रे"
बूंदें रिमझिम
जाते पल छिन
नैना तरसें
यादें झिलमिल
मन बेसबब हुआ रे
मौसम गजब हुआ रे....
सखि तुम प्यारी
सबसे न्यारी
सिसके रोए
वसुधा सारी
बेबस सा नभ हुआ रे
मौसम अजब हुआ रे
सखियों की टोली
गप्पें ठिठोली
धनक लगाए
बदरी को रोली
भू पर स्वर्ग हुआ रे
मौसम गजब हुआ रे
काल का पहिया
घूमे भैया
सबसे बड़ा क्यों
होता रूपैया
युग ये अजब हुआ रे
मौसम गजब हुआ रे
बाग बगीचे
मेघों ने सींचे
कीट-पतंगे
उतरे नीचे
रहम दिल वो रब हुआ रे
मौसम गजब हुआ रे....
हरियल धरती
नर्तन करती
ढेर उमंग
मन में भरतीं
पुलकित ये नभ हुआ रे
मौसम गजब हुआ रे..
मौसम गजब हुआ रे....
ओ मेघा कारे
मोर पुकारे
दादुर बोलें
मेरे द्वारे
खुशियों का ढब हुआ रे
मौसम गजब हुआ रे....
चाय की प्याली
पकौड़ों की थाली
प्यार से देती
रे घरवाली
स्वाद नया जग गया रे
मौसम गजब हुआ रे....
स्वरचित,मौलिक, अप्रकाशित एवंअप्रसारित कविता-
रचयिता-डा.अंजु लता सिंह गहलौत, नई दिल्ली
सर्वाधिकार सुरक्षित ©®
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