"स्याही"

कलम और स्याही का.... लेखन,मेलजोल,संपर्क,भावों का हस्तांतरण और प्यार की मजबूती में बड़ा योगदान है.

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स्वरचित,मौलिक,अप्रकाशित एवंअप्रसारित कविता

शीर्षक- "स्याही"

स्याही कलम दवात का ,कितना सुंदर मेल 


तख्ती पर आखर लिखे, कितने खेल खेल


इंक पेन का बंधु फिर,आया मधुरिम दौर


कागज पर लेखन हुआ, धूम मची चहुँ ओर


काली ,नीली, लाल, हरी इंक सदा मुस्काए


तरह-तरह के पेन के तन-मन में लहराए 


सबसे रुचिकर लोकप्रिय स्याही का नीला रंग


जिसे देखकर मानस में उठती अजब उमंग


शिव,कान्हा और राम के तन की आभा नील 

सिया,राधिका,गौरा की आंखें नीली झील


कलमकार की कलम से स्याही का रिश्ता

है अटूट यह तो सदियों से आया है निभता


निष्प्राण रहे वह लेखनी,जिसमें इंक न होय

काग़ज़ भी कोरा रहे,मन बिलखे तन रोय


स्याही की महिमा सुनो,गूँज रही सब ओर

मेरी बातों पर ज़रा,लेखक करना गौर

 


स्याह रंग की आड़ में,रजनी छिपती रोज

जगती को भाती सदा लेती उसको खोज 


 बूंद बूंद अनमोल है,स्याही बड़ी महान

 ग्रंथों में लिक्खा गया,अनुपम,अद्भुत ज्ञान



य़ह स्याही है वंदनीय,इसकी जग में शान

यही दिलाती कलमकार को,सच्चा यश सम्मान


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स्वरचित--

डा.अंजु लता सिंह गहलौत 

नई दिल्ली

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