सुषमा अपने सात वर्षीय बेटे राजू को बहला- फुसलाकर सेब खिलाए जा रही थी.
बेटे की आनाकानी और मां की मानमनौवल का दृश्य देखकर गृहसेविका रमिया की नन्ही बिटिया के मुंह में पानी आ रहा था. वह बोली-
-आंटी ! मैं तो कोई भी फल खा सकती हूँ, मम्मी देती ही नहीं हैं.
-बाहर जाकर खेलो..
-लड़कियां कीकर सी होती हैं. बिन खाद,पानी ही बड़ी हो जाती हैं.
झाड़ू लगाते हुए रमिया बोली.
-तभी राजू ने पूछा- मम्मी!फल खाकर क्या होगा ?
- मेरा बेटा शेर बनेगा...
- फिर तो मैं आपको खा जाऊंगा.
मासूमियत से वह बोला. -लेखिका- डा.अंजु लता सिंह 'प्रियम',नई दिल्ली
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