स्वरचित लेख- कौन है कलमकार?
"कबीरदास: एक प्रेरक, समर्थ एवं संपूर्ण कलमकार" मेरी दृष्टि में..
सच पूछिये तो एक कलमकार की कलम समाज में आमूल चूल परिवर्तन करने में सक्षम होती है। तभी तो कवि कहता है--" मैं कवि हूँ, एक दिन योद्धा भी बन जाऊंगा।
एक हाथ से कलम, दूसरी से तलवार चलाऊंगा।।"
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"जब तोप मुकाबिल न हो तो अखबार निकालो"
प्रेमचंद, मैथिलीशरण गुप्त, दिनकर, निराला, टैगोर,कबीर, सुभद्रा कुमारी चौहान जैसे कलमकार मेरी नजर में सच्चे अर्थों में मूक क्रांति करने वाले प्रभावी कवि और लेखक हैं।
फिर भी चयन करते समय मैं कबीरदास जी को ही सर्वोपरि कलमकार के रूप में मानती हूँ।
हिंदी साहित्य के इतिहास में मेरे सर्वाधिक पसंदीदा कवि कबीरदास जी ही हैं । हिंदी साहित्य के स्वर्णयुग भक्ति काल की निर्गुण भक्ति काव्य-धारा के लोकप्रिय भक्त कवि के रूप में ही नहीं, क्रांतिकारी और समाजसुधारक कवि के तौर पर भी सदैव ही कबीर जी का नाम ससम्मान लिया जाता रहेगा. कबीर ने अपने युग की धार्मिक, आर्थिक, सामाजिक एवं राजनीतिक व्यवस्था से सरोकार रखते हुए अद्भुत लेखन करते हुए सामाजिक-विषमताओं से टक्कर ली,जोकि किसी भी अन्य कवि या लेखक में मुझे कदापि दिखाई नहीं दी.
नि:संदेह भारत की मध्यकालीन विषम परिस्थितियां ही उनके सशक्त लेखन का कारण बनी. समकालीन पंडितों, साधकों और मौलवियों से लोहा लेकर कबीर ने अपनी रचनाओं से स्वायत्तता स्थापित की। साखी,सबद और रमैनी लिखकर कबीर ने हिंदी साहित्य में निडर होकर निर्भीक और स्वतंत्र लेखन की नींव रखी।
लहरतारा तालाब के जल में बहते संदूक में रखे नन्हे से असहाय बालक कबीर का किसी जाति विशेष और धर्म से कोई संबंध नहीं रहा। यही कारण है, कि उन्मुक्त भाव से उन्होंने जीवन भर मानवता पर ही लिखा।
यत्नपूर्वक बुनी गई जीवन की चादर को कबीर ने एहतियात से ही ओढ़ने की बात सबसे की.
वे कहते हैं..
-"झीनी झीनी बीनी चदरिया-
सो चादर सुर नर मुनि ओढ़ी, ओढ़ि कै मैली किन्हीं चदरिया।
दास कबीर जतन से ओढ़ी,ज्यों की त्यों धर दीन्ही चदरिया।।
ज्ञान को भक्ति का सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण रास्ता मानकर कबीर ने अपनी लेखनी निरंतर चलाई. माया को वे महाठगिनी कहते हैं.
वे कहते हैं..
-संतो भाई आई ज्ञान की आंधी रे!
भ्रम की टाटी सबै उड़ानी, माया रहे ना बांधि रे!
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माया महा ठगिनी हम जानी!
कबीर का रहस्यवाद बार-बार पाठकों को राम महिमा की ओर संकेत करता हुआ दिखाई देता है. सूफी परंपरा के अनुसार कबीर ने भी प्रेम में बिरहा को स्थान दिया.
वे कहते हैं-
-"राम रसायन प्रेम रस, पीवतअधिक रसाल
कबीर पीवन दुर्लभ है, मांगे शीश कलाल"
राम नाम के विषय में वे पुनःलिखते हैं, कि-
-"भारी कहो तो बहुत डरौं, हल्का कहूँ तो झूठ
मैं का जाणूं राम कूं,नैना कबहुँ न दीठ"
भक्तजनों के भ्रम को दूर करने के लिए आखिरकार कबीर दास जी राम के विषय में बताते हैं कि उनके राम साकार रूप या सगुण भक्ति वाले नहीं है, बल्कि निर्गुण ,निराकार और मन में ही अवस्थित सत्य और सद्भाव में ही अंतर्निहित हैं साथ ही अलक्षित हैं।
वे कहते हैं-
-"निर्गुण राम, जपहु रे भाई
कबीर अद्वैतवादी हैं। आत्मा में ही वे परमात्मा का निवास मानते हैं।
वे कहते भी हैं-
-"हम तो एक एक करि जाना
दोई कहे तिनहि को दोजख, जिन नाहि पहिचाना
पंचतत्व शरीर के नष्ट होने पर आत्मा परमात्मा का भेद स्वयं समाप्त हो जाता है।
कबीर लिखते हैं-
-"जल में कुंभ, कुंभ में जल है, बाहर भीतर पानी।
फूटा कुंभ, जल जलहि समाना, यह तथ कह्यो गियानी।।
कबीर दुख को ही जीवन का सत्य मानते हैं. ईश्वर की प्राप्ति दुःखों को सहकर ही संभव है।
वे कहते भी हैं-
-"सुखिया सब संसार है, खावे और सोवे।
दुखिया दास कबीर है, जागे और रोवे"
आत्मा प्रिया है परमात्मा प्रियतम। राजा राम भर्तार बनकर आए हैं।
-"दुलहिन गावहु मंगलाचार
मेरे घर आए, राजाराम भरतार"
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बहुत दिनन में प्रीतम पाए।
भाग बड़े,घर बैठे आए।।
परमात्मा में ही परमानंद का निवास मानकर कबीर कहते हैं-
मानसरोवर सुभर जल, हंसा केलि कराहिं।
मुक्ताहल मुक्ता चुगैं, अब उड़ि अनंत ना जाहिं।।
आज के समय में कबीर प्रासंगिक हैं. जातिभेद, धर्म भेद, ऊंच-नीच की भावना और सांप्रदायिक वैमनस्य को हटाकर मानवता की भावना से आगे बढ़ने का समय आ चुका है. अब हमें सजग होकर कबीर के दिखाए गए रास्ते पर चलना होगा.
संयम की पराकाष्ठा जीवन के लिये बेहद जरूरी है।
कबीर कहते भी हैं-
साईं इतना दीजिए जामे कुटुम समाय
मैं भी भूखा ना रहूं साधु न भूखा जाए
योग साधना को संयम का ही दूसरा रूप माना गया, जो आज भी शाश्वत है. योग साधनाओं का डंका अब विश्व भर में बज रहा है।
आज भी जरूरत है, किस सतगुरु हमें सुपथ दिखाए।
वे कहते हैं-
गुरु गोविंद दोऊ खड़े काके लागू पाय
बलिहारी गुरु आपने गोविंद दियो बताय
मीठी वाणी का आज भी वर्चस्व है। व्यवहार कुशलता का यह है सबसे बड़ा मूल मंत्र है।
वे कहते हैं-
-"मीठी वाणी बोलिए मन का आपा खोय।
औरन को शीतल करे आपहु शीतल होय ।।"
प्रेम में एकनिष्ठा जरूरी है..
-"नैनन की करी कोठरी पुतली पलंग बिछाय।
पलकों की चिक डारि के, पिय को लिया रिझाय।।"
स्वयं में बुराई ढूंढना भी मानव जाति के लिये कबीर का सबसे बड़ा संदेश है। तभी तो वे कहते हैं-
बुरा जो देखन मैं चला बुरा न मिलिया कोय ।
जो मन खोजा आपना मुझसा बुरा ना कोय।।
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कबीर के रहस्यवाद का निचोड़ यही लगता है,कि राम का नाम एक शाश्वत सत्य है। ध्यान,ज्ञान और मानवता की सच्ची पहचान के लिये ही नाम के प्रति एकनिष्ठ रहना जरूरी है।
राम नाम का आजीवन नामोच्चारण सुख,सम्मान,समृद्धि और सिद्धि का प्रतीक है।
अंततः कबीर हिंदी साहित्य गगन के चमकते आफताब हैं।
कलमकार हो,तो संत कवि कबीर सा।
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लेखिका-डा.अंजु लता सिंह,नई दिल्ली
© मौलिक एवं स्वरचित)
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