शीर्षक -"चेहरा"
सुख-दुःख के सारे भावों को-
चेहरा ही परिभाषित करता,
मानस में जब उठें हिलोरें-
हर्षातिरेक रगों में भरता.
इस चेहरे के मोहपाश में-
बंधे हुए हैं जीव-जन्तु सब,
उभरें भाव घृणा,शांति,दया-
हास्य,रौद्र,श्रृंगार,वीर रस.
खुली किताब लगे जब चेहरा-
होता ना कोई तेरा-मेरा,
मधुर मुस्कान समेटे अक्सर-
सबके दिल में करे बसेरा.
उठती जब मैं रोज सवेरे-
मुझको दिखते नन्हे चेहरे,
एक परी और वीर है दूजा-
बसे हैं मेरे दिल में गहरे.
पोती-पोते लगें फरिश्ते-
सबके दिल में गहरे बसते,
इनके मुखड़ों पर बलिहारी-
जीवन बीते हंसते हंसते
मां बाबा को याद करूं नित-
चेहरा ध्याऊं,होऊं पुलकित,
त्याग,नेह का सारा जीवन-
हम बच्चों को किया समर्पित.
अनजाने चेहरे से मिलकर-
बातें जब करते हैं खुल कर,
मानस में तब उठे हिलोरें-
चमकें चंदा,तारे, दिनकर.
जीवनसाथी का चेहरा-
पलकों पर लगता पहरा,
आंखों में ही बस जाता है-
दिल पर डाले है डेरा.
इन चेहरों की बात अनोखी-
दुनिया दीखे अनुपम चोखी,
आने-जाने का क्रम जारी-
जीवन-यात्रा ना जाए रोकी.
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रचयिता-डा.अंजु लता सिंह गहलौत, नई दिल्ली
anjusinghgahlot@gmail.com
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