मौसम ए इश्क

बसंत के आते ही प्रेमी युगल के तन मन उमंग से भर जाते हैं।

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स्वरचित गीत


"मौसम ए इश्क" ने कानों में गुनगुनाया है... 

खुशबूओं से लिपट चमन भी मुस्कुराया है।


भंवरे मंडराने लगे फूलों और कलियों में।।

दिल को हाथों में लेके घूमते वो गलियों में। 

हीर को देखकर रांझे ने दिल गंवाया है। 

लैला मजनूं बने जोड़ों ने जुल्म ढाया है।।

शोख,चंचल हवा ने हौले से फरमाया है। 

'मौसम ए इश्क' ने कानों में गुनगुनाया है।।


तितलियों ने भी छेड़ा नेह का नगमा प्यारा।

गुंचे झुकने लगे,लजाए,सुहाना सा नजारा।।

रवि-किरणें थिरक रही हैं चपल लहरों पर।

इश्क का है खुमार दिल,दिमाग,चेहरों पर।।

कान्हा की बांसुरी ने राधा को भरमाया है।

मौसम ए इश्क' ने कानों में गुनगुनाया है।।


राजा रानी की कहानी हुई पुरानी है।

प्यार में दरिया की मौजों सी ही रवानी है।।

एक दूजे को समझने की समझदारी है।

प्रेम की डोर बंधे खुद की जिम्मेदारी है।।

आज के प्रेमियों ने जग को अब जगाया है।

धरा सी झूमती नारी ने नभ झुकाया है।।

मौसम ए इश्क' ने कानों में गुनगुनाया है।।


   स्वरचित- डा.अंजु लता सिंह गहलौत, नई दिल्ली









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