स्वरचित बाल कथा
शीर्षक-"
- देखो मैं कितना सुंदर हूं, हूँ न?तभी तो तुम अपने टेरेस गार्डन में घूमते हुए मुझे इतने प्यार रोज देखते हो।
- लेकिन तुम बोल भी सकते हो क्या?
- कल मैं तुम्हारी और दादी की बात सुन रहा था। वह तुमको समझा रही थी ना, कि फूलों को तोड़ना नहीं चाहिए, लेकिन आप रोज ही खिले हुए फूलों में से दो चार फूल तोड़ ही देते हो।
यह अच्छी बात नहीं है।
- क्यों? मुझे बहुत अच्छे लगते हो जी तुम, इसीलिये मैं फूल तोड़कर अपनी जेब में रख लेता हूँ रोज।
पता है मेरे कपड़ों में खुशबू हो जाती है। ऐसा लगता है जैसे सेंट लगा दिया हो कपड़ों में। मेरे सभी दोस्त मेरे पास आकर सूंघते हैं और खुश होते हैं।
- वह तो ठीक है, लेकिन हम भी तो कुछ दिन मुस्कुराते हुए आप सब देखने वालों का प्यार चाहते हैं। वह तो तभी मिलेगा ना, जब आप हमें डाली पर लगा हुआ छोड़ेंगे।
- जब हम खिले रहते हैं, तो रंग बिरंगी तितलियां, मधुमक्खियां, भंवरे और सुंदर पक्षी हमारा रस और पराग लेने के लिये मंडराते रहते हैं। यहां तक कि तुम्हारे लिये शहद भी तभी बन पाता है।
- ओह! यह तो मुझे पता ही नहीं था। मुझसे बहुत बड़ी गलती हुई है फूल भैया! अब मैं आपको बिल्कुल नहीं तोडूंगा। दूर से ही आपको देखूंगा और खुश हुआ करूंगा। हां जब आप मुरझाने लगोगे, तो उदास भी हो जाऊंगा।
आज से मैं वादा करता हूं, कि कभी भी फूल नहीं तोडूंगा।
- अरे रोहन!उठो बेटा!स्कूल को देर हो रही है।आज तो आपकी पिकनिक भी है मुगल गार्डन में।
माॅम की आवाज सुनकर रोहन हड़बड़ाहट उठ बैठा।वह मन ही मन फूलों को कभी नहीं तोड़ने का संकल्प कर चुका था।
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रचयिता- डा.अंजु लता सिंह,नई दिल्ली
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