दूसरी बेटी

बेबस किशोरी को बाल श्रमिक बने रहकर कष्ट से बचाकर दादी द्वारा नवजीवन देना।

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Dr. Anju Lata Singh 'Priyam'
Dr. Anju Lata Singh 'Priyam' 11 Jun, 2022 | 1 min read





स्वरचित लघु कथा

शीर्षक- "दूसरी पोती"

- ऐय लड़की!जब भी मैं इस रैड लाइट से होकर गुजरता हूं, तुम अक्सर मेरी कार का शीशा खटखटाकर मुझे परेशान करती हो।पढ़ने लिखने वाली उम्र में क्या तुम्हें ये सब अच्छा लगता है फुटपाथ पर लोटपोट होकर करतब करना और कभी फूल,कभी खिलौने,कभी गुब्बारे वगैरा बेचना?

रवि ने कार का शीशा नीचे सरकाकर, झुंझलाते हुए,बिखरे हुए बेतरतीब बालों वाली,मैले कुचैले से कपड़े पहने उस किशोरी को डपटा।

- जी नहीं बाबूजी! यह तो मेरी मजबूरी है,वरना मैं भी पढ़ना चाहती हूं, मेरा दुर्भाग्य मेरा पीछा नहीं छोड़ता।अनाथालय के साहब के आदेश

पर मुझे रोज ही ये सामान बेचने पड़ते हैं।

- तुम जैसे बहानेबाज बहुत देखे हैं मैंने, लोगों को झांसा देकर उन्हें लूटना तुम जैसी लड़कियों को खूब आता है।चलो परे हटो।

लड़की को डपटते हुए ग्रीन लाइट होते ही रवि ने अपनी कार तेजी से दौड़ा दी।

-इस कोरोना के चलते मेरी परी का पहला जनमदिन तो फीका ही रह जाता।वो तो भला हो इस छोरी सत्या का,जो आज मुझे फुटपाथ पर मिल गई। बेचारी बदहवास सी कंधे पर गुब्बारे लादे हुए अनमनी सी होकर भटक रही थी। केदारनाथ की बाढ़ में पूरा परिवार बह गया बेचारी का।यही बच गई बस। अब यहीं रहेगी यह मेरी दूसरी पोती बनकर.इसे भी पढ़ा लिखाकर मदर टेरेसा जैसी बनाऊंगी।

 घर में प्रवेश करते ही रवि की मां ने अपने बेटे को एक सांस में सारी बातें बताकर अपना निर्णय सुना डाला।

नवागंतुका किशोरी सत्या की गोद में किलकारी मारती हुई बिटिया नन्ही बर्थ डे गर्ल परी, इन्द्रधनुषी गुब्बारों से सजा ड्राइंग रूम,फर्श पर फूलों से बनाई गई रंगोली और द्वार पर फूलों के बंदनवार सजे देखकर रवि सुखद आश्चर्य से भर गया था।

टेबुल पर केक सजाते हुए रवि की समाजसेविका पत्नी शशि कनखियों से उस सुगढ़ बेटी सत्या को निहारते हुए नवरात्र पर्व से पूर्व ही देवी के चरण द्वार तक पहुँचने पर मन ही मन गद् गद हो रही थीं।


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रचयिता-

डा.अंजु लता सिंह गहलौत, नई दिल्ली

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Dr. Anju Lata Singh 'Priyam'

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