स्वरचित कविता
शीर्षक-" मेरे पापा जी"
विशिष्ट शख्सियत के मालिक जो,वो हैं मेरे पापा जी
जब भी उनका नाम पुकारा, सारा जग ही नापा जी
वो हैं मेरे पापा जी....वो हैं मेरे पापा जी....
1.
जब मैं छोटी सी बच्ची थी, चंचल और मेधावी थी
मेरी बातें पापा जी को, हरदम बड़ा लुभाती थीं
ठुमक ठुमक कर गाती गाना, उनको हरदम भाता जी
वो हैं मेरे पापा जी...
विशिष्ट शख्सियत के मालिक जो......
वो हैं मेरे पापा जी...
2.
कंधे पर चढ़कर मैं उनके, खूब कहानी सुनती थी
गीत,कविता, किस्से लिक्खूं, स्वप्न सदा ही बुनती थी
कलम चली जब सरपट मेरी, होता था जगराता जी
वो हैं मेरे पापा जी...
विशिष्ट शख्सियत के मालिक जो,वो हैं मेरे पापा जी
वो हैं मेरे पापा जी....
3.
कॉलेज में प्रिंसिपल थे पापा, कर्मठ, सक्षम और निडर
उनकी छाया पड़ी जो मुझ पर, जीवन मेरा गया निखर
कवि सम्मेलन, फिल्में, सर्कस, शौक था उनको खासा जी
वो हैं मेरे पापा जी...
विशिष्ट शख्सियत के मालिक जो,वो हैं मेरे पापा जी
वो हैं मेरे पापा जी...
4.
गहन असर है मुझपर उनका,ज्ञान, मान ,सम्मान मिला है
ढेरों पुरस्कार जीते हैं, जीवन से ना कोई गिला
यादों में बस कर मुस्काएं,रोम-रोम सुख व्यापा जी
वो हैं मेरे पापा जी...
विशिष्ट शख्सियत के मालिक जो,वो हैं मेरे पापा जी
वो हैं मेरे पापा जी...
5.
राम कृष्ण भी विजयी रहे थे, जीवन रण में इस भू पर
ईश्वर का अवतार कहाए, पुण्य शिखर को ही छूकर
मेरे पापा उन जैसे ही, सत्यवान निश्छल जन हैं
स्नेही, प्रेरक, प्रबुद्ध, पावन मन और सुंदर तन हैं
सुख सारे करवाए मुहैया, कभी ना देखा फाका जी
खुद पर हरदम किया भरोसा, इधर उधर ना ताका जी
वो हैं मेरे पापा जी...
विशिष्ट शख्सियत के मालिक जो,वो हैं मेरे पापा जी
वो हैं मेरे पापा जी...
6.
राम कृष्ण का नाम पुकारो, निशदिन हमें सिखाते थे
गीता दर्शन के निचोड़ से, परिचित सदा कराते थे
पालक हम भाई बहनों के, पूरक भावी सपनों के
ज्ञानवान,वैज्ञानिक, टीचर, संरक्षक वे अपनों के
भेदभाव करते ना देखा, सबसे था अपनापा जी
वो हैं मेरे पापा जी...
विशिष्ट शख्सियत के मालिक जो,वो हैं मेरे पापा जी
वो हैं मेरे पापा जी...
7. ये जो भी अच्छाई मेरे तन- मन में सन्निहित है
प्रतिभा की गहराई, नक्शे कदमों से ही चिन्हित है
कितना भी हो रोष नयन में, कभी ना खोया आपा जी
वो हैं मेरे पापा जी...
8.
इस जीवन में पापा जी का, लाड़ मिला मुझको हरदम
पढ़ने में अव्वल रहती थी, पथ पर बढ़ते गए कदम
शाबाशी देकर खुश होते, मुझको बेहतर आंका जी
विशिष्ट शख्सियत के मालिक जो,वो हैं मेरे पापा जी
वो हैं मेरे पापा जी...वो हैं....वो हैं....
स्वरचित,मौलिक, अप्रकाशितएवंअप्रसारित कविता
रचयिता-डा.अंजु लता सिंह गहलौत, नई दिल्ली
सर्वाधिकार सुरक्षित ©®
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