स्वरचित कविता
शीर्षक-"दान की महिमा"
(वीडियो रील)
चौरासी लाख योनियों में भटककर मिलता है यह शरीर
उकेरी है सर्जक ने, नर-नारी की अति सुंदर तस्वीर..
कितना कुछ दिया,जग के दाता ने हमें
कर्मठ यह तन,इसमें पावन मन रमे
दिल के समंदर में भावों की लहरें,प्रवहमान जिसमें है चिंतन का नीर
नेक दिल होते कुशल कर्मवीर! दयालु वही हैं वही दानवीर.
इंसान है एक माटी का पुतला,भले काम करने आए अकेला
परहित का जज्बा मनुज की निशानी, नियति सदा से ही इसकी दीवानी
दधीचि का त्याग और कर्ण की कहानी, दान की महिमा सबने बखानी
जो अंगदान करते वो मानव भले, सौभाग्य उनके सदा संग चले
रक्तदान करना महादान होता,नेत्रदान जग में खुशियों को बोता
किसी जरूरतमंद को देते जब दान, दुआएं मिलें और बढ़ता सम्मान
अन्न,वसन,धन और कन्या का दान,सहज भाव से देता पिता महान
जीवन में दान की अनोखी है महिमा,दाता ही समझे दीनों की पीर.
नेक दिल होते कुशल कर्मवीर! दयालु वही हैं वही दानवीर.
पन्नाधाय का अनुपम बलि-दान,यम ने दिया था सती को वर-दान-
गुप्त-दान देकर करें जो उपकार,प्रभु उनकी विनती करते स्वीकार,
गंगा सा पावन,गगन सा विशाल,हितैषी का व्यवहार करता कमाल-
नहीं चाहता जग की कोई जागीर
नेक दिल होते कुशल कर्मवीर! दयालु वही हैं वही दानवीर.
दिव्यांगों को मिले जीवन दोबारा,गरीबों को मिलता है अनुपम सहारा-
भू पर सुखों का गजब संतुलन हो,इंसानियत का जमीं पर चलन हो.
देने से बढ़ता है दुगुना खजाना,अटल सत्य है ये सभी ने है माना.
नहीं नृप हो कोई,न कोई ज़मीर,सभी पास रखते हैंअपना जमीर,
नेक दिल होते कुशल कर्मवीर! दयालु वही हैं वही दानवीर.
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लेखिका- डॉ अंजु लता सिंह गहलौत,नई दिल्ली
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
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