“आज़ाद रूह”(कविता)

नश्वर तन में अविनाशी आत्मा(रूह) की अवस्तिथि अद्भुत है.

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Dr. Anju Lata Singh 'Priyam'
Dr. Anju Lata Singh 'Priyam' 11 Aug, 2024 | 1 min read

स्वरचित कविता

शीर्षक-“आज़ाद रूह”


रूह को आज़ाद करना हा! मेरे वश में नहीं

हो अचूक संधान,वो तीरऔर तरकश नहीं


अस्थिपिंजर को ढके,मोहक बदन का घेरा

क़ैद होकर रह गया ये,आफ़ताबी मन मेरा


आसमां से उतरकर कोई फ़रिश्ता आए

जमीं पर जो खो गई है,उस परी को लाए


जुदा हो जिंदा रहे,उस रूह को मेरा सलाम

हो सुकूं दिल को मेरे,ग़म भुला देती तमाम


पंख बिन उड़ती फिरे,मेरी अजब दीवानगी

महके समां,मीठी जुबां,रुहेसुखन होबानगी


  —————

रचयिता- डा. अंजु लता सिंह गहलौत, नई दिल्ली

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Dr. Anju Lata Singh 'Priyam'

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