प्रतियोगिता हेतु प्रेषित प्रविष्टि-
(प्रेषित करने की अंतिम तिथि-15-8-2022)
दिनांक-8-8-2022
शीर्षक-"प्रकृति:मेरी दोस्त"
इस वसुधा का पर्यावरण
इसमें रमता मानव तन-मन
जीव-जंतु और कीट-पतंग
जीवन में भरें आल्हाद,उमंग
इसपर जनम लिया सबने
जड़-जंगम सब हैं अपने
प्राणवायु ,भोजन,आवास
जल,अग्नि,नभ सब हैं पास
मेरे लिये प्रकृति ही खास
इसके बिन हर शख्स उदास
जन्म मरण की है सहचर
चुके न ऋण भी जीवन भर
सुबह उठूं भू को चूमूं-
फिर अपनी छत पर घूमूं,
माटी के बर्तन को धोकर-
स्वच्छ नीर उसमें भर लूं.
बैठ वहीं फिर पहरा दूं-
हर गम अपना बिसरा दूं,
आ जाते झट ढेर कबूतर-
अन्न के दाने बिखरा दूं.
गूंज उठें फिर इधर-उधर-
चूं-चूं चीं-चीं पाखी स्वर,
तितली,भंवरे,कीट-पतंगे-
बगिया में आ जाएं नजर .
सबको देखूं भला लगे-
जीने की भी ललक जगे,
बेजुबान ये सारे ही-
फिर भी लगते मुझे सगे.
मेरे घर में भोलू कुत्ता-
एक बिल्ली और गैया है,
इनकी देखभाल करते सब-
अपनी यह दिनचर्या है.
गैया को दूं ताजी रोटी -
दूध कटोरी पीती म्याऊँ,
भोलू को बिस्कुट भाते हैं-
इनके पीछे दौड़ लगाऊँ.
पौधों से बातें करती हूँ-
कागज,कलम दिये वरदान,
मूक रहें पर मुखर लगें सब-
इनसे ही मेरी पहचान.
_____
स्वरचित-
रचयिता-डा.अंजु लता सिंह गहलौत, नई दिल्ली
सर्वाधिकार सुरक्षित ©®
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
No comments yet.
Be the first to express what you feel 🥰.
Please Login or Create a free account to comment.