स्वरचित कविता
शीर्षक- "एक मुलाकात खुद से"
मन में आया मेरे मैं खुद से मुलाकात करूं....
अपनी खूबियां को टटोलूं ,मैं उनसे प्यार करुं,
दबी पड़ी हैं जाने कब से दिल के तहखाने में-
हवा दूं उनको जरा, खुल के ही इसरार करूं..
मन में आया मेरे मैं खुद से मुलाकात करूं....
प्रेरणा देकर सराहा करते थे सब मुझको एक जमाने में-
ऐसी गुम हो गईं कलाओं को स्वीकार करूं,
नृत्य,गीत,संगीत लेखनी का वो आलम,देखने,सुनने वालों की आंखों में अब भी शरारे से भरूं?
मंच पर जाऊं उम्र भूल कर,इस बात का इजहार करूं?
मन में आया मेरे मैं खुद से मुलाकात करूं....
शैशव में ठुमक-ठुमक कर मोरनी बन पंख फैलाती थी
जब मेरी काया
भर लेते थे बांहों में पापा अपनी नन्ही परी को कहते थे मुझे माया.
भीड़ के बीच में जाकर वो पल दोहराऊं, या बस स्वीकार करूं?
मन में आया मेरे मैं खुद से मुलाकात करूं...
जी में आता है कि मैं खुद ही खुद से बात करूं
गिले-शिकवे करूं खुश फहमी का इजहार करूँ
गुजर गए जो लम्हें उनसे मुलाकात करूं
ओ मेरे बुलबुले तन!रे मेरे चुलबुले मन!
अकेला आया है,अकेले जाना है
पता है सब तुझको, फिर भी क्यों बेगाना है?
माटी के पुतले तेरा इतना सा फसाना है
कभी परवाज भर, कैदी पाखी से मैं फरियाद करूं.
जी में आता है, कि मैं खुद ही खुद से बात करूं
किये संघर्ष, झेली वेदना,कड़ी मेहनत की
पढ़ने-लिखने का जुनूं, खेले बनाई सेहत भी
आज मोबाइल ने आकर बदल दिया सब कुछ
किस्सागोई लिखावटों का जिक्र किससे करूं?
जी मैं आता है कि मैं कुछ खुद ही खुद से बात करूं,..
_____
रचयिता- डा. अंजु लता सिंह गहलौत, नई दिल्ली
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
No comments yet.
Be the first to express what you feel 🥰.
Please Login or Create a free account to comment.