मेरी मौलिक, स्वरचित एवं अप्रकाशित कविता-
स्वरचित कविता-
शीर्षक-" एक पाती: मां के नाम"
मां तुमको सादर वंदन!
तुमसे मधुरिम यह जीवन,
कलम मेरी जब मां लिखती है-
कागज महके ज्यों चंदन.
आंचल में तेरे छिपकर ही-
कितनी आंख-मिचोली खेली,
शैशव के भोलेपन से ही-
लगी मुझे तू सखी सहेली,
तन मन को आल्हादित करती-
तेरी ममता भरी छुअन,
मां तुमको सादर वंदन!
विदा किया भेजी ससुराल-
कहा-जाओ अब करो कमाल,
संस्कार को साथ रखो-
फिर जीवन का मजा चखो.
आदर,प्रेम, मिलन,सत्कार-
गढ़ना इनसे घर-परिवार,
सुरभित होगा दर- आंगन-
मां तुमको सादर वंदन!
मैंने मान रखा बातों का-
मां तेरी सब सौगातों का,
समझा गुल-गेंदा सा घर-
कर्मठ होकर कसी कमर.
जब भी तुमसे मिलने आऊं-
बातों की गठरी भर लाऊं,
लेकिन अब मां सुनती कम हो-
सोच मेरी ये आंखें नम हों,
भारी मन से करूं गमन-
मां तुमको सादर वंदन!
कुचल,दक्ष,फुर्तीली मम्मी!
बेंत टेककर चलती हो अब,
व्हीलचेयर पर हो टिक जाती-
जोर पड़े है दिल पर तब.
भाई भतीजे प्यारी भाभी-
इन सबको आवाज लगातीं,
सेवारत हैं सारे घर में-
फिर भी खुद को बेबस पातीं.
मन में प्रभु का करें सिमरन-
मां तुझको सादर वंदन!
जाने क्या जादू होता है-
जब मैं पास तुम्हारे आती,
ढेरों बातें करती हो मां!
पल-पल मुझको गले लगातीं,
फिर कब आएगी बेटी अब-
कहती कहती भी न थकती,
अभी यहीं हूँ फिर आऊंगी-
कहकर उनको राहत देती.
पापा की तस्वीर एकटक-
देखा करतीं हाथ जोड़कर,
रोज वीडियो-कॉल करें मां-
दिखलातीं वो डिब्बा अक्सर,
मेरी लिक्खी ढेरों पाती-
जिसमें रक्खी हुईं मोड़कर.
खत में मेरे गीत लिखे सब-
उनको याद जुबानी हैं,
मेरी मां के अमिट प्यार की-
मीठी यही कहानी है,
इस चिट्ठी में कुछ शब्दों में-
मैंने यही बखानी है.
तुमसे मधुरिम है जीवन-
मां तुमको सादर वंदन!
________
रचनाकार-डा.अंजु लता सिंह गहलौत,नई दिल्ली (सर्वाधिकार सुरक्षित)
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
No comments yet.
Be the first to express what you feel 🥰.
Please Login or Create a free account to comment.