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पनियाला सा रंग,मेघ मस्त मलंग जादू का पिटारा लगें मेरे मन में उमंगें जगें कभी लगते हैं दादी के गेसू कभी नक़्शे बने इनमें देखूँ कभी रूई के से गोले शिशु-मुख भोले-भोले मधु-मिश्री में डूबे पगे जादू का पिटारा लगें मेरे मन में उमंगें जगें…. कभी चंदा का लगता है चेहरा ओलों को गगन ने बिखेरा कभी पंखों का ढेर कोहरे वाली सबेर कभी बर्फीला शेर लगे मेरे मन में उमंगें जगें रचयिता- डा.अंजु लता सिंह गहलौत, नई दिल्ली

Paperwiff

by anjugahlot

15 Mar, 2024

मेघ(कविता)

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