हानि
स्वरचित कविता /विषय- "हानि" जीवन एक सुंदर सपना है,पर इतना न खो जाना- अर्द्ध-निमीलित आँखों से,सुख की नींद न सो जाना, पंचतत्व-तन पाकर इसकी, मनुज!देखरेख करना- क्षिति,जल,पावक,गगन,पवन का सुलझाना ताना-बाना. भूमि का क्षरण न होवे, जल को सदा बचाए रखना- अग्नि रहे सीमाओं में ही, नभ को अथक सदा रहना, रवि,शशि,तारों से मिलकर,पवन चले, सांसें महकें- सृष्टि की हानि न होवे,मानवता कायम रखना. योग,भ्रमण से स्वस्थ रहे तन,मन को मैला मत करना. सदाचार और संस्कार का, मानव में अमृत भरना, भारत-भू पर रहकर तुम,कर्मवीर का परिचय देना- देश की हानि महापाप है,वफादार नेता चुनना. _________ रचयिता- डा.अंजु लता सिंह गहलौत,नई दिल्ली

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by anjugahlot

30 May, 2024

हानि

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