आध्यात्मवाद:- "अहं ब्रह्माष्मि" मैं ब्रह्म हूँ, अतः मैं रचना कर सकता हूँ। जब मैं स्वयं रचना करने योग्य हूँ, फिर क्यों स्वयं के अस्तित्व को भूल जाता हूँ और बाहरी दुनिया के आकर्षण और चकाचौंध में ग़ुम हो जाता हूँ।
आध्यात्म अर्थात 'आत्म' का अध्ययन या स्वयं का अध्ययन। वेदों में भी कहा गया है कि सम्पूर्ण ज्ञान स्वयं में ही समाहित है, सिर्फ जरूरत है तो उसके तलाश की। जितने भी आध्यात्मिक पुरुष हुए हैं चाहे बुद्ध, गांधी,विवेकानंद, ईशा, या मुहम्मद सब को तत्वज्ञान अंतः से ही हुआ।
इसका मतलब ये नही होता कि हम बाहरी दुनिया से वैराग्य कर ले, बल्कि स्वयं के आध्यात्मिक प्रकाश से सम्पूर्ण जगत को प्रकाशित करें। इस दायित्व का निर्वाह करें।
- अमन मिश्रा
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