संवेदनशीलता

” संवेदनशीलता यानि,दूसरों के दुःख-दर्द को समझना, अनुभव करना और उसके दुःख-दर्द में भागीदारी करना,उसमें शरीक होना। यह ऐसा मानवीय गुण है जिसके बिना इंसान अधूरा है।

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Aman G Mishra
Aman G Mishra 30 Aug, 2019 | 1 min read

उपहार 




 कभी-कभी जीवन में ऐसे पल आते हैं जब हम बिना सच्चाई जाने बहुत जल्दबाजी में कुछ भी सोच समझ लेते हैं जबकि सच्चाई कुछ और ही होती है। किसी से मिलने के बाद, किसी को देखने के बाद, किसी से बात करने के बाद हमारी धारणाएं , हमारी सोच बदल भी सकती है । सब कुछ परिस्थितियों पर निर्भर है। हमारी संवेदनाओं, हमारी नैतिकता पर, हमारी शिक्षा पर और हमारी मानवता पर बहुत कुछ निर्भर करता है।

 एक बहुत ही दिल को छू लेने वाली कहानी जो आज के युग में ज्यादा प्रासंगिक है क्योंकि आज सबसे ज्यादा संवेदनाओं की ही कमी नजर आ रही है।


 एक Postman ने एक घर के दरवाजे पर दस्तक देते हुए कहा,”चिट्ठी ले लीजिये।”अंदर से एक लड़की की आवाज आई,”आ रही हूँ।” लेकिन तीन-चार मिनट तक कोई न आया तो Postman ने फिर कहा,”अरे भाई! मकान में कोई है क्या,अपनी चिट्ठी ले लो।”

लड़की की फिर आवाज आई,”Postman साहब,दरवाजे के नीचे से चिट्ठी अंदर डाल दीजिए,मैं आ रही हूँ।”Postman ने कहा,”नहीं, मैं खड़ा हूँ, रजिस्टर्ड चिट्ठी है, पावती पर तुम्हारे साइन चाहिये।” करीबन छह-सात मिनट बाद दरवाजा खुला।

 

 Postman इस देरी के लिए झल्लाया हुआ तो था ही और उस पर चिल्लाने वाला था ही, लेकिन दरवाजा खुलते ही वह चौंक गया, सामने एक अपाहिज कन्या जिसके पांव नहीं थे, सामने खड़ी थी।


Postman चुपचाप पत्र देकर और उसके साइन लेकर चला गया। हफ़्ते, दो हफ़्ते में जब कभी उस लड़की के लिए डाक आती, एक आवाज देता और जब तक वह कन्या न आती तब तक खड़ा रहता। एक दिन उसने Postman को नंगे पाँव देखा। दीपावली नजदीक आ रही थी। उसने सोचा Postman को क्या ईनाम दूँ। एक दिन जब Postmanडाक देकर चला गया,तब उस लड़की ने,जहां मिट्टी में पोस्टमैन के पाँव के निशान बने थे, उन पर काग़ज़ रख कर उन पाँवों का चित्र उतार लिया।

 

 अगले दिन उसने अपने यहाँ काम करने वाली बाई से उस नाप के जूते मंगवा लिये। दीपावली आई और उसके अगले दिन Postman ने गली के सब लोगों से तो ईनाम माँगा और सोचा कि अब इस बिटिया से क्या इनाम लेना? पर गली में आया हूँ तो उससे मिल ही लूँ। उसने दरवाजा खटखटाया। अंदर से आवाज आई,”कौन?”पोस्टमैन, उत्तर मिला। लड़की हाथ में एक गिफ्ट पैक लेकर आई और कहा,”अंकल, मेरी तरफ से दीपावली पर आपको यह भेंट है।”

 

 Postman ने कहा,”तुम तो मेरे लिए बेटी के समान हो, तुमसे मैं गिफ्ट कैसे लूँ?” कन्या ने आग्रह किया कि मेरी इस गिफ्ट के लिए मना नहीं करें।”ठीक है कहते हुए Postman ने पैकेट ले लिया। बालिका ने कहा,”अंकल इस पैकेट को घर ले जाकर खोलना। घर जाकर जब उसने पैकेट खोला तो विस्मित रह गया, क्योंकि उसमें एक जोड़ी जूते थे।उसकी आँखें भर आई।

 

 अगले दिन वह ऑफिस पहुंचा और पोस्टमास्टर से फरियाद की कि उसका तबादला फ़ौरन कर दिया जाए। पोस्टमास्टर ने कारण पूछा,तो Postman ने वे जूते टेबल पर रखते हुए सारी कहानी सुनाई और भीगी आँखों और रुंधे कंठ से कहा,”आज के बाद मैं उस गली में नहीं जा सकूँगा। उस अपाहिज बच्ची ने तो मेरे नंगे पाँवों को तो जूते दे दिये पर मैं उसे पाँव कैसे दे पाऊँगा?”

 

 ” संवेदनशीलता यानि,दूसरों के दुःख-दर्द को समझना, अनुभव करना और उसके दुःख-दर्द में भागीदारी करना,उसमें शरीक होना। यह ऐसा मानवीय गुण है जिसके बिना इंसान अधूरा है।

 

 ईश्वर से प्रार्थना है कि वह हमें संवेदनशीलता रूपी आभूषण प्रदान करें ताकि हम दूसरों के दुःख-दर्द को कम करने में योगदान कर सकें।संकट की घड़ी में कोई यह नहीं समझे कि वह अकेला है, अपितु उसे महसूस हो कि सारी मानवता उसके साथ है।


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