बात पिछले रविवार की है 1हम सब खाना खाने रात में रेसटूरेंट गए थे 1वहा काफी भीड थी 1 हम भी टेबल लेकर बैठ गए 1खाना आने मे समय लग रहा था 1हमलोग हसी मजाक कर रहे थे 1तभी हमारी नज़र पास बैठे एक बुजूर्ग पर पडी ,जो अपने बेटे के साथ खाना खाने आये थे 1उनकी उम्र काफी लेग रही थी 1वो खाना खाते समय गिरा गिरा कर खा रहे थे ,पार उनका बेटा जो काफी पढा लिखा प्रतीत हो रहा था 1बड़े आत्मीयता से और सम्मान से उन्हे खिला रहा था 1वो बड़े शांती से उन्हे खिला रहा था 1पास बैठे लोगो पर मेरी नज़र गयी जो बहुत एमबैरेस्ड महसूस कर रहे थे 1पार मैने देखा वो बेटा बहुत प्यार से उनके साथ व्यवहार कर रहा था 1खाना खाने के बाद वो उनको वाशरूम ले गया 1वह उनका शर्ट साफ किया और बाहर लेआया।यह देखकर सब हैरान थे कि आजकल के जमाने मे भी ऐसे लोग हैं। वह बिल चुकाया और उन्हे बडे प्यार से लेकर गया।पर कल हीं की बात है मैं अपने पापा के साथ 12 सितंबर को उनके जन्मदिन पर वृद्धा आश्रम गये थे। वहाँ मैंने उसी बुजुर्ग को देखा जिसे मैंने रेस्टोरेंट में देखा था।मुझे विश्वास नहीं हुआ।फिर भी मैं अपनी उत्सुकता को शांत करने के लिए उनके पास गयी।वो किनारे गुमसुम बैठे थे।उनकी आँखों मे आँसू थे।मैने उन्हें भी शाल दी जो हमलोग बाँटने के लिए ले गये थे।वो नहीं ले रहे थे,मुझसे रहा नहीं गया ,तो मैंने पूछ लिया आप रविवार को खाने गये थे क्या अपने बेटे के साथ,वो कुछ नहीं बोले।मैंने कहा वो आपका बेटा था न जो आपकी इतनी केयर कर रहा था।वो बहुत रोने लगे।मैंने कहा आप यहाँ कैसे?आपका बेटा तो कितना अच्छा है,वो मेरे पापा से बोले आप कभी भी अपनों का भरोसा न करना,न ही ं उनकी बातों मे आकर अपनी जायदाद उनके नाम करना।जबतक आपके पास ये रहेंगे आपको सब प्यार से पूछेंगे उसके देने के बाद कोई भी आपका नहीं। मेरे पापा ने कहा वैसे मेरे बेटा बहु बहुत अच्छे हैं।मैं भी यही सोचता था पहले,वो तो मुझे एक बच्चे की तरह बीमार होने पर दोनो बेटा बहु मेरी भी सेवा करते थे। पर जैसे हीं मैंने अपनी पूरी जायदाद उनके नाम कर दी,उन्होंने उसे किसी और के नाम करा बेच दिया।और खुद जर्मनी की कंपनी मे जाँब करने चले गये।बोले आप कहाँ जायेंगे आप यहाँ रहिए मैं जल्दी ही काम निपटा के आ जाऊँगा ,फिर हमलोग साथ रहेंगे।आप अकेले कैसे रहते इसलिए मैंने घर बेच दिया ऐसा मेरे बेटे ने कहा पर नहीं मुझे पता है वह नहींआयेगा।उसने मुझसे झूठ बोला है।ये सुनकर मैं अचंभित हो गयी ये दुनिया कैसी है।मैं अंदर तक हिल गयी।पर मेरे पापा भी न जाने कल से क्यों गुमसुम से हो गये?
ये कहानी हमें अपने अस्तित्व पर चिंतन करने पर मजबूर करती है क्यों कि कई बार हम दुनिया की चकाचौंध में इतने मशगूल हो जाते हैं कि स्वयं को और परिवार को भी भूल जाते हैं हम कितने ही दुनिया मे व्यस्त क्यो हों हमे खुद के अस्तित्व पर चिंतन करते रहना चाहिए।
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