Date: 13 Aug 2019
? गजल ?
2122 2122 2122 212
इश्क में जारी रहा जो सिलसिला कुछ भी नहीं
अब रहा उनसे हकीकत में गिला कुछ भी नहीं
इश्क था उनको हमीं से हां मगर कहते नहीं
अब रहा उनसे मुहब्बत का सिला कुछ भी नहीं
जिंदगी में जिंदगी से जंग भी जारी रही
जिंदगी में जिंदगी जैसा मिला कुछ भी नहीं
इक नदी पीछा किये थी साहिलों से इस कदर
जैसे उनके दरमियां हो फासिला कुछ भी नहीं
जब तलक दौलत थी यारो तब तलक यारी रही
आजकल है दोस्तों का काफिला कुछ भी नहीं
निर्भया कितनी सताई जा रहीं हैं मुल्क में
राजनीती के बराबर पिलपिला कुछ भी नहीं
आदमी की जांन पर शामत हुई है आजकल
फैसला होता रहा पर फैसला कुछ भी नहीं
दौर में पतझड़ के गुलशन को है सींचा खून से
गुल के उस वीरान जंगल में खिला कुछ भी नहीं
जीस्त में "योगी "किये हैं काम तो लाखों मगर
'मील के पत्थर' के जैसा है शिला कुछ भी नहीं
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