आध्यात्मिकता

विशुध्द आध्यात्मिक जगत में साधक लोग आत्म शुद्धि के लिए ही हर कार्य करते हैं। बकरीद या इस प्रकार के तमाम त्योहार, दान व्रत, कुर्बानी इत्यादि का कर्मकांड इसीलिए बनाया गया है कि लोग अपनी आसक्ति कुर्बान कर, सत्य के मार्ग पर बढ़ सकें। वीतरागभय क्रोधा मन्मया मामुपाश्रिताः। बहवो ज्ञानतपसा पूता मद्भावमागताः॥

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Aman G Mishra
Aman G Mishra 13 Aug, 2019 | 1 min read

विशुध्द आध्यात्मिक जगत में साधक लोग आत्म शुद्धि के लिए ही हर कार्य करते हैं। बकरीद या इस प्रकार के तमाम त्योहार, दान व्रत, कुर्बानी इत्यादि का कर्मकांड इसीलिए बनाया गया है कि लोग अपनी आसक्ति कुर्बान कर, सत्य के मार्ग पर बढ़ सकें।


वीतरागभय क्रोधा मन्मया मामुपाश्रिताः।

 बहवो ज्ञानतपसा पूता मद्भावमागताः॥


पहले भी, जिनके राग, भय और क्रोध सर्वथा नष्ट हो गए थे और जो मुझ में अनन्य प्रेमपूर्वक स्थित रहते थे, ऐसे मेरे आश्रित रहने वाले बहुत से भक्त उपर्युक्त ज्ञान रूप तप से पवित्र होकर मेरे स्वरूप को प्राप्त हो चुके है


गीता जी मे कहा गया

योगिनः कर्म कुर्वन्ति सङ्गं त्यक्तवा आत्मशुद्धये।


भगवान श्रीकृष्ण से जुड़े लोग केवल आत्म शुद्धि के लिए कर्म करते है, इसीलिए हम संसार मे आये भी हैं। आसक्ति छोड़कर, आत्मशुद्धि के लिए कर्म करने। 


श्रीभगवान श्रीराम भी रामचरितमानस में कहते हैं

 

निर्मल मन जन सो मोहि पावा। मोहि कपट छल छिद्र न भावा।


अर्थात हमें लाभ हानि जरूरत भविष्य भूत इत्यादि को छोड़कर केवल निर्मलता के लिए काम करना चाहिए तभी श्रीभगवान मिलेंगे।


हमारे जीवन मे ऐसे बहुत से लोग मिलते हैं जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से हमारी निंदा करते हैं या हमें कष्ट पहुंचाने के प्रयास में लगे रहते हैं। एक साधक कभी भी ऐसे लोगों और उनकी हरकतों से परेशान नहीं होता, न ही वह मुझे चोट पहुंचाने वाला है यह सोचकर उसे चोट पहुंचाने का काम करेगा।


इस संदर्भ में राजा शिवि, राजा हरिश्चंद्र, गुरु गोबिंद सिंह, महाराणा प्रताप इत्यादि का उदाहरण उल्लेखनीय है जिन्होंने सांसारिक रूप से असफल जीवन जिया, लेकिन आत्म शुद्धि के लिए वे हम सभी के अनुकरणीय हैं।


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