वो ब्रज बिहारी कृष्ण मुरारी मन मेरे म्ह बसग्या।
उस गिरधारी की भक्ति के म्हा मन मेरा फंसग्या।।
कण कण म्ह वास उसका के तेरे म्ह के मेरे म्ह।
एक उसका नाम साचा इस दुनिया के डेरे म्ह।
वो हे उभारै भक्तां नै जो फंसे होनी के फेरे म्ह।
मन के अँधेरे म्ह उसकी भक्ति का दिवा चसग्या।।
गोकुल के म्हा पला वो वासुदेव देवकी कै जण कै।
माखन चुराया गोपी सताई यशोदा का लाल बण कै।
गऊ चराई बंसी बजाई रहा वो कृष्ण सदा तण कै।
कालिये के फण कै ऊपर नाच्या जो लाखां नै डसग्या।।
कंश, पुतना, शिशुपाल मार धरती का बोझ घटाया।
कुरुक्षेत्र के म्हा उस कृष्ण गीता का ज्ञान सुनाया।
बन सारथी रण कै म्हा उस अर्जुन का मान बढ़ाया।
नरसी का भात भराया ओड़े रपियाँ का मींह बरसग्या।।
दादा जगन्नाथ बी उस मुरली मनोहर नै रटै जावैं सं।
गुरु रणबीर सिंह बी आठों पहर उसके गुण गावैं सं।
सुलक्षणा भक्ति कै बस म्ह हो कृष्ण दौड़े आवैं सं।
वो मोक्ष पावैं सं जिनका मन भक्ति म्ह धँसग्यया।।
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