ग़ज़ल

Originally published in hi
Reactions 0
498
Aman G Mishra
Aman G Mishra 24 Aug, 2019 | 1 min read

मूरख को चालाक बताना पड़ता है 

गदहे  को भी बाप बनाना पड़ता है 


शगुन की खातिर भूल के डाइटिंग वाइटिंग को 

शादी में तो ठूंस के खाना पड़ता है


भर्ती का है रेट महीने की तनख्वाह

ऊपर भी हिस्सा भिजवाना  पड़ता है 


जिसमें सुनने तक का भी शऊर न हो 

ऐसी महफ़िल में भी गाना पड़ता है 


जो अगले ही दिन एंटर बारात करे 

ऐसी मैरिज में भी जाना पड़ता है

 

एक अमीर की बेटी से शादी करके 

पूरी लाइफ नाज़ उठाना पड़ता है 


दिल में आता है खुद ही करना बेहतर 

जब नौकर से काम कराना पड़ता है 


बीवी बोली हर हफ्ते दो फ़ास्ट करो

रोज़ तुम्हारे लिए बनाना पड़ता है 


कोई साली सलज नहीं हो क़िस्मत में 

ऐसी भी ससुराल में जाना पड़ता है 


बीवी कैसी निकलेगी शादी के बाद 

जैसी निकले साथ निभाना पड़ता है 


0 likes

Published By

Aman G Mishra

aman

Comments

Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

Please Login or Create a free account to comment.