मूरख को चालाक बताना पड़ता है
गदहे को भी बाप बनाना पड़ता है
शगुन की खातिर भूल के डाइटिंग वाइटिंग को
शादी में तो ठूंस के खाना पड़ता है
भर्ती का है रेट महीने की तनख्वाह
ऊपर भी हिस्सा भिजवाना पड़ता है
जिसमें सुनने तक का भी शऊर न हो
ऐसी महफ़िल में भी गाना पड़ता है
जो अगले ही दिन एंटर बारात करे
ऐसी मैरिज में भी जाना पड़ता है
एक अमीर की बेटी से शादी करके
पूरी लाइफ नाज़ उठाना पड़ता है
दिल में आता है खुद ही करना बेहतर
जब नौकर से काम कराना पड़ता है
बीवी बोली हर हफ्ते दो फ़ास्ट करो
रोज़ तुम्हारे लिए बनाना पड़ता है
कोई साली सलज नहीं हो क़िस्मत में
ऐसी भी ससुराल में जाना पड़ता है
बीवी कैसी निकलेगी शादी के बाद
जैसी निकले साथ निभाना पड़ता है
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