कंचन जैसी प्यास है
पर संध्या आज उदास है!!!
क्षितिज पर है सुर्य की लपट
सन्नाटे में है खटपट
स्मृतियाँ है विराम सी
शाम भी है गुमसुम सी
माझी की कश्ती डुब गयी
अपने सारे खो गये
ईसलिये..............
संध्या आज उदास है!!!!!
स्वप्न क्रंदन कर गये
टिटहरी चिखती गयी
सिसक रही है हर घर में
मौत पर वो सिसकिया
किसानों के घर में जैसे
मौत ने मातमं किया
इसलिये......
संध्या आज उदास है!!!!!!
दुल्हन फेरे लेके गयी
बाप अंदर से टुट गया
मोती सोया चुपचाप
माँ आँसू में नहा गयी
खबर न आयी बेटे की, हात को काम मिला की, नही
इसलिये.....
संध्या आज उदास है!!!!!
घर को सन्नाटा खा गया
गली में कोहरा छा गया
पत्ते सारे गीर गये,
मौसम सारा बदल गया
धरती को कर दिया नंगा
लुट लिया सबने सबकुछ
वापस कुछ भी दिया नही
इसलिये.. ......
संध्या आज उदास है !!!!!!
पानी बिन मोेैते हो गयी
वृक्ष सारे कट गये
मौत का मातम छा गया
खोखला पृथ्वी को कर गये
भुंकप आया सारे मारे गये
इसलिये.......
संध्या आज उदास है
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