(मेहनत) कहानी
मेरे पति उच्चपद पर आसीन थे बड़े बड़े कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में बुलाया जाता था। एक दिन मैं अपने पति के साथ ऐसे कार्यक्रम में गयी हुई थी। वहां मैंने पुलिस कमिश्नर को देखा देखते ही पहचान गयी अरे ये तो वही लड़का है जो हमारे साथ इलाहाबाद में पढ़ता था। और फिर मैं सोचने लगी।।
दिल्ली से इलाहाबाद मेरे पापा का टांसफर हो गया था। शहर मुझे बड़ा अपना सा लगा, बहुत प्रभावित थी इस शहर से। और इलाहाबाद वैसे भी उस समय विघा का गढ़ माना जाता था आनन्दित थी मैं वहाँ के कालेज में एडमिशन ले लिया इलाहाबाद युनिवर्सिटी से निकले हुए हरिवंश राय बच्चन, गुलजारी लाल नंदा, मिनरल पांडे, शंकर दयालशर्मा, मैं बहुत प्रभावित थी और रोमांचित भी थी।।
अब हम कालेज जाने लगे।। वहां पर हमने देखा एक साधारण सा लड़का पढ़ने आता था कपड़ों को देखकर लगता था कि किसी गरीब घर से है। हमारा बार बार उस पर ध्यान चला जाता था क्योंकि वह बहुत उदास रहता था। हमारा मन जाने क्यों उस की तरफ आकर्षित रहता था। शायद उसकी उदासी का कारण जानने का था। इसी कारण मैंने उससे दोस्ती कर ली। प्रन्द़ह बीस दिन में हम अच्छे दोस्त बन गए। पता चल उसका नाम विवेक है और साथ ही बेहद प्रतिभाशाली कालेज के हर फंक्शन में भाग लेता था। समझ नह पा रही थी थी इतना प्रतिभाशाली होते हुए भी इतना उदास क्यों रहता है एक दिन हमने उससे उसकी उदासी का कारण पूछा उसने हमें बताया घर में वह और उसकी मां रहते हैं पिता बचपन में चला बसे।। मां ने इधर उधर काम कर उसे पाला था और पढ़ाया भी। लेकिन अब उसकी मां बीमार है मां को कैंसर है थोड़े बचे-खुचे पैसों मां का इलाज चल रहा है वह भी एक वकील के यहाँ काम करता है और कुछ पैसे कमा लेता हूँ किसी तरह घर का खर्च चल रहा है।।।
एक दिन अचानक उस लड़के ने कालेज आना बंद कर दिया हमें पता ही नहीं चला और हमें उसका घर नहीं मालूम था क्या करती कुछ नहीं कर सकते सकी फिर हमारे पापा का भी वहां से टांसफर हो गया हम दूसरे शहर में चले गए।
आज अचानक उस लड़के को देखकर सब याद आ गया हम भागकर उससे मिलने पहुंच गये उसने भी हमें देखते ही पहचान लिया हम आपस आपस में बात करने लगे। उसने मुझे बताया मां का देहांत हो गया था इस कारण कालेज आना छोड़ दिया। बहुत नर्वस हो गया था। एक दो साल कुछ नहीं किया फिर हिम्मत कर दुबारा पढ़ना शुरू कर दिया। रात में काम भी करता था और पढ़ता भी था आज अपनी मेहनतके फलस्वरूप यहां हूँ।।
आज समझ आ गया अगर आप मेहनत करे कोई भी कहां से कहां जा सकता है
अतः ज़िन्दगी में सफलता का एक यही सूत्र है मेहनत, कड़ी मेहनत के साथ साथ विवेक का उपयोग इस प्रक्रिया में चार चांद लगा देता है और आसमान की बुलंदियों में साधक को पहुचा देता है। साथ ही हमें ये ध्यान रखना चाहिए कि साधन को कभी साध्य नही समझना चाहिए।
गीता में श्री कृष्ण यही प्रेरणा देते हैं कि कर्मयोग ही सर्वश्रेष्ठ है ।
धन्यवाद।
इति.
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