मायावी मारीच
सेना सहित खर-दूषण का संहार देखकर शूर्पणखा समझ गई कि ये वनवासी कोई साधारण मनुष्य नहीं हैं। इनकी सूचना लंकेश्वर रावण को देनी चाहिए। अतएव वह उसी समय लंका जा पहुँची। उस समय रावण दरबार में मंत्रियों के साथ किसी विषय पर मंत्रणा कर रहा था।
सहसा शूर्पणखा चीत्कार करते हुए प्रविष्ट हुई—‘‘दुहाई लंकापति रावण, दुहाई! तुम यहाँ लंका में आराम से बैठे हो और वहाँ दो वनवासियों ने खर-दूषण सहित उनकी संपूर्ण राक्षस-सेना को नष्ट कर डाला है। बल के मद में चूर उन वनवासियों ने मेरे भी नाक-कान काट लिये हैं। जिस रावण से देवता भी भयभीत रहते हैं, उसकी बहन की यह दुर्दशा! इससे बड़ा अपमान तुम्हारा और क्या होगा?’’
शूर्पणखा की दुर्दशा और खर-दूषण के वध का समाचार सुनकर रावण क्रोध से भर उठा-‘‘वे वनवासी कौन हैं, जिन्हें अपने प्राणों का मोह नहीं रहा? शीघ बता बहन, मैं अभी उन्हें काल का ग्रास बना दूँगा।’’
शूर्पणखा रोते हुए बोली, ‘‘भैया! वे अयोध्या-नरेश दशरथ के पुत्र राम और लक्ष्मण हैं। उनके साथ एक सुंदर स्त्री सीता भी है। उसे मैं तुम्हारे लिए लाना चाहती थी, परंतु उन्होंने मेरे नाक-कान काटकर मेरी यह दुर्दशा कर दी। भैया! अब तुम ही अपनी बहन के अपमान का प्रतिशोध लो।’’
रावण कुछ देर सोचता रहा। फिर पुष्पक विमान में बैठकर मारीच के पास पहुँचा। यह वही ताड़का-पुत्र मारीच था, जिसे राम ने बाण मारकर समुद्र-तट पर फेंक दिया था। तभी से वह राम-नाम का स्मरण करते हुए जीवन बिता रहा था।
रावण बोला, ‘‘मारीच! राम ने शूर्पणखा के नाक-कान काटकर तथा खर-दूषण का वध कर मुझे चुनौती दी है। मैं उनकी चुनौती स्वीकार करता हूँ। यद्यपि मैं चाहूँ तो उन्हें पल भर में समाप्त कर सकता हूँ, परंतु मैं उन्हें इतनी आसान मृत्यु नहीं देना चाहता। इसके लिए मैंने एक योजना बनाई है, जिसके अंतर्गत मैं सीता का हरण कर लूँगा और त्री के वियोग में राम तड़प-तड़पकर मर जाएगा। भाई के वियोग में लक्ष्मण भी प्राण त्याग देगा। तुम्हें इस योजना में मेरा साथ देना होगा।’’
राम का नाम सुनकर मारीच भयभीत होकर बोला, ‘‘राक्षसराज! आप श्रीराम की शक्ति को नहीं जानते। वे अति पराक्रमी और शक्तिशाली हैं। आप उनका अहित करने के विषय में सोचें भी नहीं, अन्यथा वे संपूर्ण राक्षस जाति को अपने क्रोध से जलाकर भस्म कर देंगे। जिनके एक बाण ने ही मुझ जैसे बलवान् राक्षस को कोसों दूर ला फेंका, जिन्होंने अकेले ही महाशक्तिशाली खर-दूषण सहित विशाल राक्षस सेना को नष्ट कर दिया, वे साधारण मनुष्य नहीं हो सकते। इसलिए आप इस कुविचार का त्याग कर लंका लौट जाएँ।’’
रावण कुपित होकर बोला, ‘‘मारीच! लगता है, तुम्हें अपने प्राणों का मोह नहीं रहा। मैं यहाँ तुम्हारा उपदेश सुनने नहीं आया। मैं अपने निर्णय को अवश्य पूर्ण करूँगा। यदि तुम सहायता के लिए सहमत नहीं हुए तो मैं अभी तुम्हारा सिर धड़ से अलग कर दूँगा!’’
मारीच के लिए धर्म-संकट की स्थिति उत्पन्न हो गई। उसने सोचा, ‘यदि मैंने रावण की बात मानने से इनकार कर दिया तो यह अभी मुझे काल का ग्रास बना देगा। और यदि मैंने इसकी बात मान ली तो श्रीराम अपने बाणों से मुझे भेद डालेंगे। परंतु उनके हाथों से मरकर निस्देंह मैं मोक्ष प्राप्त करूँगा।’ अंततः मारीच ने रावण की बात मान ली।
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
No comments yet.
Be the first to express what you feel 🥰.
Please Login or Create a free account to comment.