एक ग़ज़ल

एक बेहतर कवि उससे भी बेहतर इंसान होता है।

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Aman G Mishra
Aman G Mishra 13 Jun, 2020 | 1 min read

ग़म किया, चाँद मेरे हिस्से में न था,

मग़र जो भी था चाँद से कम न था।


अब तू हीर-रांझे के किस्से न कह,

मेरा फ़साना भी उनसे कम न था।


शब भर रोते हुए देखा था मैंने भी,

सुबह होते ही उसे कोई ग़म न था।


रूह निकल गयी जब इस पुतले से, 

दिखता तो वैसे ही मग़र दम न था।


लाख इल्ज़ाम लगा गयी जाते जाते,

प्यार मुझे भी उससे कुछ कम न था।


©aman_g_mishra

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Aman G Mishra

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