ग़म किया, चाँद मेरे हिस्से में न था,
मग़र जो भी था चाँद से कम न था।
अब तू हीर-रांझे के किस्से न कह,
मेरा फ़साना भी उनसे कम न था।
शब भर रोते हुए देखा था मैंने भी,
सुबह होते ही उसे कोई ग़म न था।
रूह निकल गयी जब इस पुतले से,
दिखता तो वैसे ही मग़र दम न था।
लाख इल्ज़ाम लगा गयी जाते जाते,
प्यार मुझे भी उससे कुछ कम न था।
©aman_g_mishra
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