बालि-वध
हनुमान को श्रीराम-लक्ष्मण के साथ आते देख सुग्रीव ने चैन की साँस ली। वह समझ गया कि इन योद्धाओं का बालि के साथ कोई संबंध नहीं है। उसने आगे बढ़कर अपरिचितों का स्वागत किया। हनुमान ने सुग्रीव को श्रीराम का परिचय देते हुए वनवास और सीता-हरण की घटना बताई। साथ ही उन्होंने बताया कि वे सीता की खोज में उनकी सहायता चाहते हैं। सुग्रीव ने श्रीराम को हरसंभव सहायता का आश्वासन दिया। इसके बाद पवित्र अग्नि को साक्षी मानकर सुग्रीव और श्रीराम मित्रता के बंधन में बँध गए।
सुग्रीव अपनी पत्नी और राज्य को छोड़कर ऋष्यमूक पर्वत पर निवास क्यों कर रहा है, श्रीराम इस विषय में जानना चाहते थे। उन्होंने अपनी यह जिज्ञासा सुग्रीव को बताई तो वह उन्हें अपनी कथा सुनाने लगा।
किष्किंधा का राजा बालि अत्यंत बलशाली और पराक्रमी योद्धा है। उसे ब्रह्माजी से वर प्राप्त था कि जो भी उसके समक्ष आएगा, उसका आधा बल उसमें समा जाएगा। वह इतना पराक्रमी था कि उसने राक्षसराज रावण को एक मास तक अपनी बगल (काँख) में दबाए रखा था। मैं बालि का छोटा भाई हूँ। दोनों भाइयों में अटूट प्रेम था और हम सुखपूर्वक जीवन व्यतीत कर रहे थे।
एक बार मय दानव का पुत्र मायावी बल के अहंकार में भरकर बालि को युद्ध के लिए ललकारने लगा। बालि शत्रु की ललकार का प्रत्युत्तर देने चल पड़ा। दोनों में भयंकर मल्ल युद्ध हुआ। जब बालि का पक्ष मजबूत होने लगा तो मायावी प्राण बचाकर वहाँ से भाग निकला। बालि ने मायावी को समाप्त करने का निश्चय कर लिया था, अतएव मुझे लेकर वह उसका पीछा करने लगा। प्राण बचाते हुए मायावी एक गुफा में जा छिपा। बालि ने मुझे गुफा के द्वार पर प्रतीक्षा करने को कहा और स्वयं मायावी को मारने के लिए गुफा में प्रविष्ट हो गया।
अनेक दिन बीत गए; मैं गुफा के द्वार पर बैठा बालि के लौटने की प्रतीक्षा करता रहा। एक दिन गुफा में से रक्त की मोटी धारा निकलने लगी। रक्त देखकर मैं भयभीत हो गया। ‘अवश्य दानव मायावी ने भाई बालि को मार दिया है’, यह सोचकर मैं काँपने लगा। मैंने एक चट्टान से गुफा का द्वार बंद कर दिया और किष्किंधा लौट आया। बालि को मरा जानकर वानरों ने मेरा अभिषेक कर अपना राजा घोषित कर दिया।
इधर, मायावी का वध करके बालि जब किष्किंधा पहुँचा तो मुझे सिंहासन पर बैठे देख उसके क्रोध की सीमा न रही। उसने मार-मारकर मुझे अधमरा कर दिया और मेरी पत्नी को भी छीन लिया। एक बार एक ऋषि ने बालि को शाप दिया था कि ऋष्यमूक पर्वत पर आते ही वह जलकर भस्म हो जाएगा। इसलिए बालि से बचता हुआ मैं अपने सहयोगियों के साथ ऋष्यमूक पर्वत पर आकर रहने लगा।
सुग्रीव की व्यथा सुनकर श्रीराम को बड़ा दुख हुआ। उन्होंने प्रतिज्ञा की कि वे बालि को मारकर सुग्रीव को उसका राज्य और पत्नी पुनः दिलवाएँगे। श्रीराम की योजनानुसार सुग्रीव किष्किंधा के द्वार पर खड़ा होकर बालि को युद्ध के लिए ललकारने लगा। सुग्रीव की ललकार पर बालि दौड़ा हुआ आया। दोनों भाइयों में मल्ल युद्ध छिड़ गया। उस समय श्रीराम धनुष पर बाण चढ़ाए एक वृक्ष के पीछे छिपकर खड़े थे। किंतु दोनों का चेहरा इतना मिलता था कि वे बालि को पहचान न सके। बालि के प्रहारों से आहत सुग्रीव किसी तरह प्राण बचाकर भागा।
दूसरे दिन राम ने सुग्रीव के गले में फूलों की माला डालकर पुनः युद्ध के लिए भेजा। इस बार पहचानने में कोई कठिनाई नहीं हुई। श्रीराम ने एक ही बाण से बालि का वध कर डाला। तत्पश्चात् श्रीराम की आज्ञा से लक्ष्मण ने किष्किंधा में जाकर सुग्रीव का राज्याभिषेक किया तथा बालि के पुत्र अंगद को युवराज घोषित कर दिया।
इस प्रकार श्रीराम ने सुग्रीव के दुखों का अंत कर दिया।
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
No comments yet.
Be the first to express what you feel 🥰.
Please Login or Create a free account to comment.