मुकेश कुमार जी कि माता-पिता का देहांत बचपन में ही हो गया था ।जब वे 6 या 7 बरस के थे तब वे इस "प्रयास" चिल्ड्रन होम में आए। यह लड़कों की एक संस्था है। जहां पर बच्चों को स्कूल भेजा जाता है, बहुत प्रकार के खेल खिलाए जाते हैं और उन्हें व्यवसायिक प्रशिक्षण भी दिया जाता है ताकि वह अपने पैरों पर खड़े हो सके।
प्रयास संस्था की स्थापना आज से लगभग 20 वर्ष पूर्व हुई थी । यह एक ऐसी संस्था है जिसका जन्म परिस्थितियों का ही परिणाम कहा जा सकता है। जहांगीर पुरी में एक बार झुग्गियों में आग लग गई जिसकी वजह से बहुत से लोग बेघर हो गए तो इस जगह पर उन लोगों को शरण दी गई। तभी से "प्रयास" संस्था का जन्म माना जा सकता है । इसकी स्थापना के पीछे निश्चय ही टीमवर्क है परंतु टीम भी कार्य तभी सफलतापूर्वक कर सकती है जब उसका लीडर सही राह दिखाने वाला हो, जुझारू हो, भविष्य दृष्टा हो, सही समय पर सही निर्णय लेने वाला हो और स्वयं भी कर्तव्यनिष्ठ हो। तभी कोई भी संस्था निरंतर प्रगतिशील रहकर अपना कार्य सफलतापूर्वक कर सकती है , और इन सभी गुणों का समावेशन जिस शख्सियत में मौजूद है उनका नाम श्री आमोद कंठ जी है जो प्रयास संस्था के संस्थापक कहे जा सकते हैं । उन्होंने इस संस्था को ऊपर उठाने के लिए यहां अहर्निशम कार्य पूरी तन्मयता के साथ किया। जब यह संस्था आरंभ हुई थी तो केवल यहां पर एक कमरा ही था। परंतु आज यह तीन मंजिली इमारत है। इसी के साथ यहां पर शिक्षा के साथ-साथ व्यावसायिक शिक्षा के भी बहुत से कार्यक्रम निरंतर चलाएं जा रहे हैं। श्री आमोद कंठ रिटायर्ड IPS ऑफिसर रहे हैं तथा वे डीआईजी D.I.G DEPUTY INSPECTOR GENERAL OF POLICE के पद पर भी आसीन रह चुके हैं ।भारत की उच्चतम सर्विसेज के पद पर जो व्यक्ति काम कर चुका हो उसकी कार्यक्षमता, कार्यदक्षता पर कोई भी सवाल उठाया ही नहीं जा सकता। उसकी काबिलियत पर किसी भी प्रकार का शक नहीं किया जा सकता क्योंकि यह देश की सबसे प्रतिष्ठित सेवा मानी जाती है, और श्री आमोद कंठ जी ने अपनी प्रतिभा का पूर्ण परिचय देते हुए इस संस्था के लिए पूर्ण समर्पण भाव से कार्य किया ।
प्रयास संस्था में ऐसे बच्चे होते हैं जो या तो रेस्क्यू करके लाए जाते हैं या जिनके माता-पिता का पता नहीं होता। कई बार कुछ बच्चे अपराधी भी हो सकते हैं। ऐसी परिस्थितियों में जब बाल अपराधी भी उनके साथ रहे तो किस तरह का वातावरण उन्हें मिला होगा इसका अंदाजा आप लगा सकते हैं। इनमें से कई बच्चे अपराधी बन कर निकल गए और कुछ यहां से भाग गए। ऐसी विपरीत परिस्थितियों में इन्होंने अपनी स्नातकोत्तर तक की पढ़ाई पूरी की। उसके बाद ये इसी संस्थान में अप्रेंटिस सहायक के तौर पर कार्य करने लगे। उसी के साथ - साथ उन्होंने अपनी पढ़ाई को भी जारी रखा और लगन और निष्ठा, धैर्य के साथ अपने लक्ष्य की ओर निरंतर बढ़ते रहे। फिर इन्होंने प्रयास संस्था की कार्यकारिणी समिति से प्रार्थना पत्र देकर इस बात की अनुमति प्राप्त की कि इस "प्रयास" संस्था का सुपरिटेंडेंट इन्हीं को बनाया जाए क्योंकि इसके लिए यही सबसे उपयुक्त व्यक्ति हैं जो इस कार्यभार को बहुत अच्छे से संभाल सकते हैं क्योंकि उनका बचपन यही बीता है और इसके परिवेश, इसकी परिस्थितियों से वे भली-भांति परिचित है और इनका एक अदृश्य बंधन इस संस्था के साथ बचपन से ही जुड़ा हुआ है।
शैक्षणिक व अनुभाविक योग्यता एक तरफ है वह दूसरे लोगों में भी उपस्थित हो सकती है। परंतु वे अनुभव, विचार, भावनाएं और वह जज्बा जो इस प्रयास के साथ इनका जुड़ा हुआ है वो किसी और में संभव नहीं हो सकता क्योंकि इन्होंने अपना बचपन यही बिताया है और वे कहीं न कहीं इस संस्थान के प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट करना चाहते हैं । यहां पर आए हुए बच्चों की सेवा करके ये ऐसा चाहते हैं कि जिस प्रकार मैंने अपने आप को सँवारा है, एक मुकाम को हासिल किया है उसी प्रकार यहां पर आने वाला हर बच्चा पढ़ाई करें या किसी भी प्रकार की व्यावसायिक शिक्षा ग्रहण करें ताकि वह समाज में एक सुयोग्य पद पर आसीन हो एवं अपने पैरों पर खड़ा हो सके और अपने परिवार को बना सके और परिवार का पालन पोषण कर सके। यह उनकी एक प्रकार की निष्ठा है इस संस्थान के प्रति।
इस प्रकार की भावनाओं को देखते हुए श्री आमोद कंठ जी ने इनकी प्रार्थना को स्वीकृति प्रदान करते हुए इन्हें "प्रयास" के सुपरिटेंडेंट के पद पर पूर्ण औपचारिकताओं के साथ प्रतिष्ठित किया और तभी से वे इस पद पर बने हुए हैं तथा अपना कार्य बहुत ही लगन और परिश्रम के साथ करते चले आ रहे हैं।
इसी पद पर रहते हुए ये पूर्व राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा पाटिल जी से भी मिल चुके हैं जो अपने आप में एक गौरव का विषय है।
"सेल्फ मेड मैन" उक्ति का इससे अधिक जीवंत उदाहरण शायद अब तक मैंने नहीं देखा है।
मुकेश जी बहुत ही मिलनसार, विनम्र और सहयोगी प्रवृत्ति के व्यक्ति हैं और हमेशा सकारात्मक मुस्कान उनके चेहरे पर दिखाई देती है जो इस बात का प्रमाण है कि हमारी जिंदगी में कितनी भी मुसीबतें क्यों ना आए हमें हंसकर उन से बाहर निकलना है ।
मैं उनके व्यक्तित्व से बहुत प्रभावित हुई। इसी लिए उनका अनुभव आपके साथ साझा करने का मन किया। हम यदि अपने विचारों को, अपनी भावनाओं को दूसरों के साथ साझा नहीं करेंगे तो हमें प्रेरणाएं, शिक्षा और अनुभव कैसे प्राप्त होंगे? इसलिए इस तरह की सकारात्मक जीवंत कहानी एक दूसरे के साथ हमेशा ही साझा करते रहना चाहिए, ऐसा मेरा मानना है ताकि हम समाज में एक दूसरे को इस तरह की मिसाल दे सके और बच्चों को आगे बढ़ने का मौका दे सकें, उनके लिए एक मिसाल बनने का प्रयास भी कर सकें।
मैं ईश्वर की बहुत आभारी हूं कि मुझे इस तरह के लोगों से मिलने का अवसर प्राप्त हुआ। मैं मुकेश जी के जीवन की के लिए असीम मंगलकामनाएं प्रेषित करती हूं एवं उनके उज्जवल भविष्य की कामना करती हूं।
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