डायरी और शायरी

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Aman G Mishra
Aman G Mishra 10 Sep, 2019 | 1 min read

डायरी


केतकी को गुजरे सात दिन ही हुए थे और सत्यजीत को चिंता होने लगी थी, अकेले इतने बड़े घर में कैसे रहेंगे। चारों बच्चे अपने अपने परिवार के साथ आपने संसार में जाने की तैयारी कर रहे थे। केतकी के जीते जी जब सत्यजित ऑफिस क्लब या दोस्तों के साथ मस्ती करके घर आते थे तो वह इंतजार करती मिलती थी। उनके आते ही आगे पीछे घूमने लगती, कभी पानी तो कभी खाने का आग्रह करती, कुछ ना कुछ बोलती रहती ।वे झुंझला कर कह देते थे, "आते ही शुरू हो जाती हो ,थका हुआ आया हूं पर पहले तुम्हारा बड़बड़ाना सुनूं।"


केतकी को कहीं साथ ले जाने की  आवश्यकता महसूस नहीं हुई लेकिन अब लग रहा था केतकी का बोलना याद आएगा जब रात दिन घर में सन्नाटे का राज होगा। तभी सबसे बड़ी पोती कुछ किताबें लेकर ड्राइंग रूम में दाखिल हुई जहां सब बैठे थे। उत्साहित होकर बोली ," देखो अम्मा की अलमारी में से कितनी सारी डायरियां निकली है ।"


सत्यजीत ने बहू बेटियों को कह दिया था केतकी का जो सामान वे लेना चाहे ले ले, लेकिन किसी ने भी कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई थी।


बड़ा बेटा तपाक से बोला," अरे पुरानी डायरियां होंगी ,मॉम को सामान इकट्ठा करने का बहुत शौक था ।अभी तो और भी न जाने क्या-क्या बेकार की चीजें निकलेंगी।"


 तभी बड़ी बहू ने एक डायरी हाथ में लेकर पन्ने पलटते हुए कहा ," इसमें तो बड़े बड़े शायरों और कवियों की रचनाएं है ,लगता है मम्मी जी को साहित्य में रुचि थी ।आप तो कह रहे थे वे कुल दसवीं पास थी।"


 पुत्री बोली ,"यहां वहां से उतार ली होगी ।अब समय तो बहुत रहता था, कुछ करने को था नहीं ।"


तभी एक दामाद ने दूसरी डायरी के पन्ने पलटते हुए कहा ,"लगता है उन्हें स्वयं भी लिखने का शौक था।' मेरे जज्बात मेरे अल्फाजों की आगोश में'।"


 एक दो पन्ने पढ़ने के बाद वह बोला," बहुत सुंदर लिखा है, एक औरत की छटपटाहट और आकांक्षाओं का बहुत सूक्ष्मता से वर्णन किया है।"


 सत्यजीत हड़बड़ा कर बोले," छटपटाहट कैसी ?सब तो था उसके पास, इतना बड़ा घर ,बच्चे ,पैसों की कभी कोई कमी नहीं छोड़ी थी मैंने।"


 दूसरी पुत्री दुखी स्वर में बोली ,"लेकिन उनके कोमल मन में हम सब ने कभी नहीं झांका। सब अपनी अपनी महत्वाकांक्षा पूरी करने में लगे रहे ।"


सत्यजीत को भी महसूस हुआ कि चालीस साल के वैवाहिक जीवन में वे अपनी पत्नी को कितना जान और समझ पाए ।उसके व्यक्तित्व के एक हिस्से से तो वे बिलकुल अनजान थे।


वह दमाद अभी भी डायरी पढ़ने में लगा हुआ था ,बोला," मैं अपने एक मित्र को यह डायरी दिखाता हूं ,उसे साहित्य का अच्छा ज्ञान है ।उसके सहयोग से मैं मम्मी जी की रचनाओं की किताब छपवाऊंगा ।यही उनको सच्ची श्रद्धांजलि होगी ।"


सत्यजीत सिर झुकाए बैठे थे उनकी हिम्मत नहीं हुई दमाद से वह डायरी मांग ले जिसमें उनकी पत्नी की रुह थी।


इस कहानी से हमे ये सीख लेनी चाहिए कि हमारा व्यक्तित्व हमारी डायरी में स्पष्ट झलकता है इसलिए बिना इजाजत के किसी की डायरी नही पढ़नी चाहिए। अगर उनके बारे में जानने की उत्सुकता हो ही तो स्वयं उनसे मिल के उनके बारे में जाने इसमे उन्हें भी बेहद खुशी होगी।

धन्यवाद

इति।


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