गिरते नैतिक मूल्य

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Aman G Mishra
Aman G Mishra 31 Aug, 2019 | 1 min read

*एक गिरता संस्कार*

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छठी के छात्र छेदी ने छत्तीस की जगह बत्तीस कहकर जैसे ही बत्तीसी दिखाई , गुरुजी ने छडी उठाई और मारने वाले ही थे की छेदी ने कहा, "खबरदार अगर मुझे मारा तो! मैं गिनती नही जानता मगर उत्पीडन अधिनियम की धाराएँ अच्छी तरह जानता हूँ...

गणित मे नही , हिंदी मे समझाना आता है मुझे.."


गुरुजी चौराहों पर खड़ी मूर्तियों की तरह जड़वत हो गए , जो कल तक बोल नही पाता था , वो आज आँखें दिखा रहा है!


शोरगुल सुनकर प्रधानाध्यापक भी उधर आ धमके , कई दिनों से उनका कार्यालय से निकलना ही नही हुआ था , वे हमेशा विवादों से दूर रहना पसंद करते थे इसी कारण से उन्होंने बच्चों को पढ़ाना भी बंद कर दिया था . आते ही उन्होंने छड़ी को तोड़ कर बाहर फेंका और बोले "सरकार का आदेश नही पढ़ा आपने ??? प्रताड़ना का केस दर्ज हो सकता है. रिटायरमेंट नजदीक है , निलंबन की मार पड़ गई तो पेंशन के फजीते पड़ जाएँगे . बच्चे न पढ़े न सही पर प्रेम से पढ़ाओ.... उनसे निवेदन करो.... अगर कही शिकायत कर दी तो ?"


बेचारे गुरुजी पसीने पसीने हो गए मानो हर बूँद से प्रायश्चित टपक रहा हो! इधर छेदी "गुरुजी हाय हाय" नारा लगाने लगा और बाकी बच्चे भी उसके साथ हो लिए.


प्रधानाध्यापक ने छेदी को एक कोने मे ले जाकर कहा , "मुझसे कहो क्या चाहिए?"

छेदी बोला , "जब तक गुरुजी मुझसे माफी नही माँग लेते है , हम विद्यालय का बहिष्कार करेंगे. बताएँ की शिकायत पेटी कहाँ है?"


समस्त स्टाफ आश्चर्यचकित और भय का वातावरण हो चुका था... छात्र जान चुके थे की उत्तीर्ण होना उनका कानूनी अधिकार है।


बड़े सर ने छेदी से कहा की मैं उनकी तरफ से माफी माँगता हूँ, पर छेदी बोला, "आप क्यों मांगोगे ? जिसने किया वही माफी माँगे, मेरा अपमान हुआ है ,घोर अपमान ।"


आज गुरुजी के सामने बहुत बड़ा संकट था। जिस छेदी के बाप तक को उन्होंने दंड, दृढ़ता और अनुशासन से पढ़ाया था, आज उनकी ये तीनों शक्तिया परास्त हो चुकी थी।वे इतने भयभीत हो चुके थे की एकांत मे छेदी के पैर तक छूने को तैयार थे , लेकिन सार्वजनिक रूप से गुरूता के ग्राफ को गिराना नही चाहते थे। छड़ी के संग उनका मनोबल ही नही , परंपरा और प्रणाली भी टूट चुकी थी। सारी व्यवस्था , नियम, कानून एक्सपायर हो चुके थे। कानून क्या कहता है , अब ये बच्चो से सिखना पड़ेगा!


पाठ्यक्रम में अधिकारों का वर्णन था , कर्तव्यों का पता नही था। अंतिम पड़ाव पर गुरु द्रोण स्वयं चक्रव्यूह मे फँस जाएँगे!


वे प्रण कर चुके थे की कल से बच्चे जैसा कहेंगे , वैसा ही वे करेंगे। तभी बड़े सर उनके पास आकर बोले, "मैं आपको समझ रहा हूँ वह मान गया है और अंदर आ रहा है। 

उससे माफी माँग लो, समय की यही जरूरत है।"


छेदी अंदर आकर टेबल पर बैठ गया और हवा के तेज झोंके ने शर्मिन्दा होकर द्वार बंद कर दिए।


आगे अब कलम लिखने से पहले ही थम गई.......


कई बार मौन की भाषा संवादों पर भारी पड़ जाता है।

*आजकल के गुरू का दर्द.....किस तरह पढ़ाये बच्चों को...पढ़ाना मुश्किल हो गया है...और जमाना कहता है...मास्टर पढ़ाते नहीं हैं...फोकट की तनख्वाह लेते हैं...


हमें आसमान में उड़ना है परंतु पाँव जमीन में रहें, ये याद रखना होगा, और गुरु जनों का सम्मान ही हमारे संस्कारों की नींव है, अतः हमें इसका विशेष ध्यान रखना चाहिए, आइये इस शिक्षक दिवस हम अपने गुरुओं को उनका सबसे प्रिय उपहार प्रदान करें-एक अच्छा शिष्य।

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