पुण्य की कमाई

पुण्य की कमाई

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Aman G Mishra
Aman G Mishra 19 Aug, 2019 | 1 min read

पुण्य की कमाई


" टिकट कहाँ है ? " -- टी सी ने बर्थ के नीचे छिपी लगभग तेरह - चौदह साल की लडकी से पूछा ।"

नहीं है साहब।

"काँपती हुई हाथ जोड़े लडकी बोली।

"तो गाड़ी से उतरो।" टी सी ने कहा ।

*इसका टिकट मैं दे रहीं हूँ।............पीछे से ऊषा भट्टाचार्य की आवाज आई जो पेशे से प्रोफेसर थी ।*

"तुम्हें कहाँ जाना है ?" लड़की से पूछा" पता नहीं मैम ! "" तब मेरे साथ चल बैंगलोर तक ! ""

तुम्हारा नाम क्या है ? "" चित्रा

"बैंगलोर पहुँच कर ऊषाजी ने चित्रा को अपनी एक पहचान के स्वंयसेवी संस्थान को सौंप दिया । और अच्छे स्कूल में एडमीशन करवा दिया। जल्द ही ऊषा जी का ट्रांसफर दिल्ली होने की वजह से चित्रा से कभी-कभार फोन पर बात हो जाया करती थी ।करीब बीस साल बाद ऊषाजी को एक लेक्चर के लिए सेन फ्रांसिस्को (अमरीका) बुलाया गया । लेक्चर के बाद जब वह होटल का बिल देने रिसेप्सन पर गई तो पता चला पीछे खड़े एक खूबसूरत दंपत्ति ने बिल भर दिया था ।"तुमने मेरा बिल क्यों भरा ? ? ""

*मैम, यह बम्बई से बैंगलोर तक के रेल टिकट के सामने कुछ नहीं है ।*

""अरे चित्रा ! ! ? ? ? . . . .

चित्रा कोई और नहीं *इंफोसिस फाउंडेशन की चेयरमैन सुधा मुर्ति थी, एवं इंफोसिस के संस्थापक श्री नारायण मूर्ति जी की पत्नी थी।*

यह उन्ही की लिखी पुस्तक "द डे आई स्टाॅप्ड ड्रिंकिंग मिल्क" से लिया गया कुछ अंश

*कभी कभी आपके द्वारा भी की गई सहायता किसी की जिन्दगी बदल सकती है।*

अगर कुछ कमाना है तो पुण्य अर्जित कीजिये क्योंकि यही वो मार्ग है जो स्वर्ग तक जाता है....!!!!

             

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Aman G Mishra

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