द इंटर्न (2015)
रॉबर्ट-डी-नीरो, जी हाँ, द लीजेंड रॉबर्ट-डी-नीरो और एनी हैथ्वे की शानदार अदाकारी से बनी ये फिल्म ना सिर्फ़ मनोरंजन करती है बल्कि कई सारे सवाल जो आज समाज में खड़े है उनका सामना भी करती है
| सेवानिवृति के ज़्यादातर लाभ अब कई सरकारी नौकरियों में भी नहीं रहे, समाज का एक बड़ा वर्ग सेवानिवृत श्रेणी से जुड़ता जा रहा है, ज़्यादातर परिवार के युवा सदस्य अपने अपने घरों को छोड़ कर कहीं और अपना आशियाँ बना चुके है, इन दिनों में संयुक्त परिवार एक किंवदंती बनता जा रहा है, ऐसे में जो लोग सेवानिवृत हो रहें है उनके लिए समाज में क्या स्थान है? वो कैसे अपना समय, जो इतने अनुभवों से सीँचे हुए एक छतनार वृक्ष की तरह विस्तृत है, का सदुपयोग करेंगे? क्या उनके लिए समाज की ज़िम्मेदारी महज 'ओल्ड एज होम' बना कर ख़त्म हो जाती है? ऐसे ही कुछ सवालों का जवाब है ये फिल्म 'द इंटर्न' |
शब्द का अर्थ है प्रशिक्षु, आम तौर पर प्रशिक्षु वे लोग होते है जो अपनी पढ़ाई पूरी करके पहली बार कार्यक्षेत्र में कदम रखते है, जिन्हे उस माहौल का ज़्यादा अनुभव नहीं होता | पर इस फिल्म में इसका प्रयोग कुछ अलहदा तरीके से हुआ है | बेन (रॉबर्ट-डी-नीरो) एक 70 वर्षीय वृद्ध व्यक्ति है, सेवानिवृत होने से पहले ही उसकी पत्नी का स्वर्गवास हो चुका है | बच्चे अब बड़े हो गये है इतने बड़े कि अपना-अपना घरौंदा अलग बसा चुके हैं और उनके भी बच्चे अब बड़े हो रहे है| सेवानिवृति के पश्चात वो जितना समय अपने पोतों-पोतियों को दे सकते थे, देते है| एक दिन उसे अहसास होता है कि वो कुछ ज़्यादा ही निर्भर हो चुके हैं सो कुछ महीनों के बाद वापस अपने घर लौट आते है, जहाँ उन्हे तय करना है कि अब आगे अपनी जिंदगी के साथ क्या करना चाहिए |
इसी पशोपश में एक दिन उसे एक "सीनियर इंटर्न" के जॉब का पेंफ्लेट मिलता है, जो किसी ई-कॉमर्स बिज़्नेस कंपनी का है, बेन खुद को कैसे इस प्रकार के स्टार्ट-अप बिज़्नेस के लिए तैयार करता है, आधुनिक तरीके के इंटरव्यू का सामना करता है, और कैसे खुद को उन नये लोगों के बीच में स्थापित करता है, जहाँ सभी बड़े से छोटे लोग एक साथ बैठते है, उसके पिछले अनुभवों से बिल्कुल उलट,जहाँ उसने तकरीबन 43 साल उप महानिदेशक के रूप में काम किया है | तकनीक के साथ उम्र का बैर सहज ही दिखाई देता है | खैर, अच्छे लोग सभी के साथ घुलमिल ही जाते है, पर बेन को जिसका इंटर्न बनना था वो थी 28 साल की जूल्स ओस्टिन ( एनी हैथ्वे) जो इस कंपनी की प्रणेता भी थी और इतनी उमर वाले किसी इंटर्न के साथ काम करने में किंचित भी सहज न थी |
जूल्स एक आधुनिक कामकाजी महिला है जिसकी एक 6 साल की बेटी है और इसी कारणवश उसके पति ने अपनी नौकरी छोड़ दी ताकि जूल्स को अपना सपना पूरा करने का पूरा मौका मिले, जूल्स ने भी खुद को पूरी तरह काम में झोंक दिया | 16 से 18 घंटे काम में व्यस्त जूल्स अक्सर घर पर अपना वक्त नहीं दे पाती | एक क़ानूनी अड़चन के चलते उसे एक सी ई ओ की ज़रूरत है पर वो किसी को अपनी कंपनी सौंपना नही चाहती | एक दिन उसे अपने पति के विवाहेत्तर संबध के बारे में पता चलता है, उसे आत्मग्लानि महसूस होने लगती है कि शायद उसके समय ना देने के कारण ही ऐसा हुआ होगा, पर अपने पति को कुछ जाहिर नहीं करती | फिर उसे लगता है कि अगर एक सी ई ओ होगा तो वो परिवार को ज़्यादा वक्त दे पाएगी |
इधर धीरे-धीरे बेन की नेक-दिली, उसका तजुर्बा और खुशनुमा व्यवहार उसे पूरी कंपनी का चहेता बना देता है, और जूल्स भी उसकी कदर करने लगती है| सेवा, मित्रवत भाव, मददगार व्यक्तित्व मतलब एक तरह का 'जेंटलमेन' वाला चरित्र, बेन और जूल्स आख़िरकार दोस्त बन जाते है | एक दिन जूल्स, बेन को बता देती है कि उसके पति का कहीं चक्कर चल रहा है तो बेन पूछता है कि उसे कब से पता है और बताता है कि उसे भी पता है | साथ ही ये भी कहती है कि उसने आख़िरकार एक सी ई ओ ढूँढ लिया है जिसके बाद वो अपने परिवार को ज़्यादा समय दे पाएगी पर इस पर बेन उसे क्या सलाह देता है और उसका जूल्स के व्यावसायिक जीवन और घरेलू जीवन पर क्या असर होता है? बेन का क्या होता है ? इत्यादि सवालों के जवाब तो आपको फिल्म देखकर ही मिलेंगे | कहानी और संकलन कैसा लगा ये ज़रूर बताना.. जल्द ही कुछ और नया लेकर आऊंगा |
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