शूर्पणखा और खर-दूषण
विराध राक्षस का उद्धार करने के बाद श्रीराम अनेक वनों और पर्वतों को पार करके महर्षि अगस्त्य के आश्रम में पहुँचे। महर्षि अगस्त्य के बारे में कहा जाता है कि वे पहले ऋषि थे, जिन्होंने दक्षिण (भारत) की ओर जाने का मार्ग खोला था। महर्षि की इच्छा जानकर श्रीराम उनके आश्रम में ही रहे। महर्षि ने उन्हें दिव्यात्र भी प्रदान किए। जब श्रीराम ने उनसे जाने की आज्ञा माँगी तो उन्होंने उन्हें निकट ही पंचवटी नामक स्थान पर निवास करने का परामर्श दिया। इस प्रकार महर्षि की आज्ञा से राम अनुज और सीता के साथ पंचवटी की ओर चल पड़े।
मार्ग में श्रीराम की भेंट गृद्धराज जटायु से हुई। यह वही जटायु था जिसने एक बार राजा दशरथ के प्राणों की रक्षा की थी। श्रीराम को जब राजा दशरथ और जटायु की मित्रता के विषय में ज्ञात हुआ तो उनका हृदय आदर और श्रद्धा से भर गया। उन्होंने जटायु को पिता-तुल्य सम्मान दिया। इसके बाद वे पंचवटी में कुटिया बनाकर रहने लगे।
एक दिन शूर्पणखा नामक एक विकराल और भयंकर राक्षसी पंचवटी की ओर आ निकली। शूर्पणखा महर्षि विश्रवा की पुत्री और राक्षसराज रावण की बहन थी। उसने जब श्रीराम को देखा तो उनकी सुंदरता पर मोहित होकर उनसे विवाह करने को उद्यत हो उठी। उसने एक सुंदरी का वेश धारण किया और श्रीराम के समक्ष जाकर बोली, ‘‘हे सुंदर युवक! मैं राक्षसराज रावण की बहन शूर्पणखा हूँ। मैं अनेक वर्षों से योग्य वर की तलाश में भटक रही थी। तुमसे मिलकर आज मेरी खोज पूर्ण हो गई। युवक! मैं तुमसे विवाह करना चाहती हूँ। तुम इसी समय मेरे साथ लंका चलो। वहाँ हम ऐश्वर्य भोगते हुए सुखपूर्वक जीवन व्यतीत करेंगे।’’
श्रीराम ने सीता की ओर संकेत किया और हँसते हुए बोले, ‘‘सुंदरी! मेरा तो विवाह हो चुका है और मैंने एकपत्नी-व्रत धारण कर रखा है। इसलिए मैं तुम्हारी यह इच्छा पूर्ण नहीं कर सकता। तुम चाहो तो मेरे छोटे भाई से पूछ सकती हो। वह भी मेरे समान ही सुंदर और शक्तिशाली है।’’
शूर्पणखा ने लक्ष्मण को देखा तो उसका मन उनकी ओर आकृष्ट हो गया। उसने लक्ष्मण से अपने मन की बात बताते हुए विवाह की इच्छा प्रकट की।
लक्ष्मण परिहास करते हुए बोले, ‘‘सुंदरी! मैं तो केवल दास हूँ। तुम राजकुमारी होकर एक दास से विवाह कैसे कर सकती हो? इसलिए तुम श्रीराम से ही विवाह का निवेदन करो। वे तुम्हारी इच्छा अवश्य पूर्ण करेंगे।’’
इस प्रकार श्रीराम और लक्ष्मण ने शूर्पणखा का विवाह-निवेदन अस्वीकार कर दिया। तब अपमान से क्रोधित शूर्पणखा अपने वास्तविक रूप में आ गई और गरजते हुए बोली, ‘‘राम, तुमने इस त्री के लिए मेरा अपमान किया है। मैं अभी इसे खा जाऊँगी।’’ वह मुँह फाड़कर सीता की ओर लपकी।
यह देखकर श्रीराम ने लक्ष्मण को प्रतिकार के लिए संकेत किया। संकेत पाते ही लक्ष्मण ने तलवार से शूर्पणखा के नाक-कान काट लिये। पीड़ा से कराहती शूर्पणखा अपने भाई खर-दूषण के पास गई।
शूर्पणखा की दुर्दशा देखकर खर-दूषण का रोम-रोम जल उठा। उन्होंने उसी समय विशाल राक्षस सेना लेकर पंचवटी पर आक्रमण कर दिया। परंतु श्रीराम ने अकेले ही संपूर्ण राक्षस-सेना को ध्वस्त कर खर-दूषण का वध कर दिया।
इस प्रकार संपूर्ण दक्षिण क्षेत्र राक्षसों से रिक्त हो गया।
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