प्रतिकूल धाराएं और जीवन

साधारणतया हम अपने परिवार की छत्रछाया में रहते हैं। जहां हमारे माता-पिता, हमारे भाई बहन हमें हर तरह से आलंबन देते हैं। मां हमारे स्वास्थ्य का प्रेम पूर्वक ख्याल रखती है।

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Aman G Mishra
Aman G Mishra 29 Aug, 2019 | 1 min read

 हमारी रोजमर्रा की जिंदगी में हम कभी-कभी ऐसे इंसानों से मिलते हैं जिनकी सच्चाई जानने के बाद हम उनकी और इज्जत करने लग जाते हैं । मेरा ऐसा मानना है कि हर व्यक्ति की जिंदगी में कोई ना कोई कहानी जरूर होती है और वह अपने आप में अनूठी होती है ,मौलिक होती है और यदि कामयाब व्यक्ति की बात की जाए तो यह अवश्यंभावी है।

 कभी-कभी हम लोगों से बातचीत किए बिना ही उनके बारे में एक साधारण सी धारणा बना लेते हैं। जबकि ईश्वर की सृष्टि में अरबों - खरबों इंसान हैं ।जिस प्रकार दो इंसान एक जैसे नहीं हो सकते, उनके फिंगरप्रिंट एक दूसरे से नहीं मिल सकते। उसी प्रकार इंसानों की कहानियां भी, उनकी कामयाबी , उनके संघर्ष की कहानियां, उनकी परिस्थितियां भी एक जैसी नहीं हो सकती । जब हम बात करते हैं, संवाद करते हैं तो हमें ज्ञात होता है कि कोई भी इंसान किसी ओहदे पर है और कामयाबी के स्तर पर उसका आनंद भोग रहा है तो उसके पीछे उसका बड़ा संघर्ष रहा होगा। 

आज मैं एक ऐसी ही शख्सियत की बात करती हूं जो स्वयं अपना ही पर्याय है ।

साधारणतया हम अपने परिवार की छत्रछाया में रहते हैं। जहां हमारे माता-पिता, हमारे भाई बहन हमें हर तरह से आलंबन देते हैं। मां हमारे स्वास्थ्य का प्रेम पूर्वक ख्याल रखती है।


 "मां है तो सब का बचपन अनूठा निराला है, क्योंकि मां ही तो हर बच्चे की प्रथम पाठशाला है "।


 यह मेरी स्वरचित कविता की कुछ पंक्तियां हैं जो साधारण इंसान के बचपन से संबंधित हैं। एक माँ की ,उसके आंचल की तुलना कहीं नहीं है ।इसी प्रकार एक पिता के संघर्ष की, उसके त्याग और समर्पण की भी तुलना कहीं नहीं की जा सकती और यह दोनों अपने आप बच्चों को इस प्रकार पोषित करते हुए उसे समाज में ऊंचे पद पर देखना चाहते हैं और कुछ सौभाग्यशाली ऐसा होते हुए देख भी पाते हैं ।इसमें सभी अवयवों के साथ उस बच्चों की निष्ठा, मेहनत, लगन, समर्पण ,उसका भाग्य आदि सभी साथ देते हैं। कुल मिलाकर सफलता इन सभी चीजों का एक सुखद परिणाम है।

 परंतु एक बार कल्पना कीजिए कि यदि परिस्थितियां बिल्कुल विपरीत हो जाए तो..........

 यदि आपके माता-पिता बचपन में ही आपका साथ छोड़ जाए तो ....


आपका कोई भी भाई - बंधू ना हो...... और आप जीवन की समझ आने से पहले ही अपने आप को एक चिल्ड्रन होम में पाते हैं तो......

 तो आप कैसा महसूस करेंगे......

 जहां न माँ की ममता है, ना लोरी है , न उसकी गोदी है ,ना उसकी प्रेम भरी फटकार है, ना उसका दुलार है, ना पिता है, ना उसका साया है, न उसका अनुशासन है। यानी सब कुछ रिक्त......

सब सूना...

न आलिंगन है,न निस्वार्थ प्रेम है ।

 है तो बस एक शून्यता.....



 ये ऐसी परिस्थितियां जो किसी भी इंसान को भीतर तक तोड़ कर रख देती हैं। परंतु कुछ इंसान ऐसे होते हैं जो इन परिस्थितियों को अपनी सीढ़ी बनाकर चलते हुए जीवन में सफलता प्राप्त कर एक मिसाल कायम करते हैं।  ऐसी ही एक मिसाल हैं SELF MADE MAN श्री मुकेश कुमार जी जो जहांगीरपुरी "प्रयास"  चिल्ड्रन होम में सुपरिटेंडेंट SUPERITENDENT के पद पर कार्यरत है। उनके बारे में जब वहां के कोऑर्डिनेटर श्री भूपेश जी ने मुझे बताया तो मुझे बहुत ही आश्चर्य हुआ और साथ - साथ एक नई इच्छाशक्ति, एक ऊर्जा का भी संचरण हुआ कि जब एक व्यक्ति विपरीत परिस्थितियों से भी लड़ कर अपने आप को इस मुकाम पर स्थापित कर सकता है तो हम सब के पास तो बहुत से साधन मौजूद है इन सब के साथ हमारे पास अपनों का साथ है उनकी दुआएं हैं।

 यहां पर कुछ पंक्तियां जो बहुत ही मशहूर हैं उनका जिक्र करना चाहूंगी......


"वो पथ क्या , पथिक कुशलता क्या, 

जिस पथ में बिखरें शूल न हों,

नाविक की धैर्य कुशलता क्या, जब धाराएं प्रतिकूल न हों"।


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Aman G Mishra

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