ख़ुशी पाने का कोई रास्ता नहीं है, ख़ुशी ख़ुद ही वह रास्ता है।
किसी काम को जब रुचि से किया जाता है तो उस काम को करने में आनंद आता है, और अंतत: जब वह पूरा हो जाता है तो आपको उपलब्धि की अनुभूति होती है। जो काम आपको ऐसी अनुभूति देता है उसे आप बार-बार करना चाहते हैं।
इसके विपरीत, काम को जब एक विवशता, एक बाध्यता के रूप में समझा व किया जाता है, तो जो काम आप कर रहे होते हैं, उससे आप जूझ रहे होते हैं और आख़िर जब वह पूरा हो जाता है तो आपको ‘चलो, जान छूटी’ का एहसास होता है। जो आपको ‘जान छूटी’ का एहसास देता है, भविष्य में आप उससे बचना चाहते हैं। आप यदि उसे दोबारा भी कर रहे होते हैं, तब भी उसे आधे-अधूरे मन से, अरुचि व अनिच्छा से ही कर रहे होते हैं।
जो लोग हर काम को रुचि से करते हैं, वे जीवन में उपलब्धियों से भरे होते हैं, इसीलिए वे जीवन के प्रति बहुत अभिलाषित रहते हैं। जो लोग हर काम को एक विवशता, एक बाध्यता के रूप में लेते हैं, वे जीवन से थक जाते हैं, ऊब जाते हैं और इसीलिए जीवन से छुटकारा पाने की इच्छा की हद तक चले जाते हैं।
लोग अपने जीवन के दैनिक कामकाज करने में भी अरुचि व अनिच्छा वाले हो गए हैं… लोग खाना बनाने में भी अनिच्छुक हो गए है… क्या प्री-कुक्ड फ़ूड, फ़ास्ट फ़ुड, फ्रोज़न फ़ूड और रेडीमेड फ़ूड ने आज हर रसोई में घुसपैठ नहीं कर ली है? लोग आराम से बैठकर भोजन का स्वाद लेने के भी अनिच्छुक होते जा रहे हैं… नाश्ता करना छोड़ देना और लंच के लिए समय न निकाल पाना क्या आम बात नहीं होती जा रही है? बच्चे स्कूल जाने के उतने अनिच्छुक नहीं हैं, जितने वयस्क लोग काम पर जाने में अनिच्छुक होते जा रहे हैं… सोमवार की सुबह पड़ने वाले दिल के दौरों की बढ़ती संख्या का क्या आप कोई और कारण बता सकते हैं?
जीवन से जुड़ी अनिवार्यताओं को यदि एक विवशता की तरह, एक बाध्यता की तरह देखा जाएगा, और हर काम के पूरा हो जाने पर छुटकारा पाने के एहसास वाली लंबी साँस ली जाएगी… तो हम अपने जीवन की गुणवत्ता में विकास कैसे कर पाएँगे?
देखिए, हम जो भी करें, उसे उत्सव की तरह करें। ‘उफ़, तो मुझे यह करना ही पड़ेगा’ वाली प्रवृत्ति के बजाय, ‘मैं यह करना चाहता हूँ’ वाली प्रवृत्ति को अपनाएँ। हमारा हर कार्य कुछ इस तरह से हो कि उसका आरंभ रुचि के साथ हो, करना आनंद के साथ हो और समापन उपलब्धि की अनुभूति के साथ हो। जो काम हमें करना ही है तो फिर उसे आनंद के साथ ही क्यों न किया जाए?
शिष्य ने पूछा, “गुरुजी, ज्ञान-प्राप्ति से पहले भी आप केवल कुँए से जल खींचते थे और लकड़ियाँ काटते थे, और ज्ञान-प्राप्ति के बाद भी आप वही कर रहे हैं। आपके कार्य में तो मुझे कोई अंतर दिखाई नहीं दे रहा है।” गुरु का उत्तर था, “हाँ, मेरे कार्य में कोई अंतर नहीं है, लेकिन जिस गुणवत्ता से मैं यह कार्य कर रहा हूँ, उसमें परिवर्तन आ गया है।”
कन्फ़्यूशियस ने ठीक ही कहा था, “वह रोज़गार चुनें, जिसमें आपकी रुचि है, तो फिर आपको जीवन में एक भी दिन काम नहीं करना पड़ेगा।”
ख़ुशी पाने का कोई रास्ता नहीं है, ख़ुशी ख़ुद ही वह रास्ता है।
इन महान विचारों को पढ़ कर जीवन की आशा और बढ़ जाती है और यही विचारों की जीवंतता का प्रमाण भी है। हम दैनिक दिनचर्या में अगर इन छोटी-छोटी बातों को ध्यान रखें तो हमारे जीवन का अनुभव सुखद और सरल हो सकता है। तो आइए जीने की कोशश करें इन विचारों को...।
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