'गरीबी' शब्द वास्तव में एक प्रकार की हीनता के लिए प्रयुक्त होता है। इसका मानव के आर्थिक और सामाजिक जीवन में बहुत बड़ा प्रभाव है और यही प्रभाव कई बार हमें हीनता का आभास करवाते हैं। समस्या यह है कि देश की जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा गरीबी का शिकार है। ऐसे में यदि गरीब स्वयं को हीन मान लेता है तो वह ख़ुद को इससे कभी मुक्त नही कर पायेगा
देश का युवा मानसिक रूप से गरीबी को हीनता न समझे इस लिए श्री मोरारी बापू इस शब्द का आध्यात्मिक अर्थ करते हैं, और इतना सुंदर तथा सरल कि हरेक युवा उसे ग्रहण कर सके। और कोई एक बार समझ भी ले तो उसके मन और मस्तिष्क से सारी हीनता स्वयं ही समाप्त हो जाये।
इस शब्द (ग+री+बी) का बापू अपनी कथा में आध्यात्मिक अर्थ करते हैं कि 'ग' को यदि गर्व या अभिमान के तौर पर देखा जाए, और 'री' को रिक्तता या अभाव के अर्थ में देखे। मतलब अभिमान की रिक्तता हो, और किस चीज के अभिमान की कमी के लिए बापू ने संदेश कहा है, उसके लिए बापू ने 'बी' के लिए पांच शब्द निर्धारित किये हैं।
जिसमें आते हैं- बदन,वसन,बमन(त्याग),वर्ण और बचन।
इन पाँच चीजों का अभिमान न हो, उसे गरीबी कहते हैं।
बापू ने इस शब्द का इतना कारगर अर्थ कर दिया कि उनकी बात अगर आचरण में लाई जाए तो गरीबी तो क्या इस जीवन की कोई भी समस्या हमें हीन नही बना सकती।
मानव जीवन कल्याण में अपना जीवन लगा देने वाले परमपूज्य बापू के चरणों में कोटि-कोटि प्रणाम!
इति! नमस्कारांते...।
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