हा! आज शिक्षा मार्ग भी संकीर्ण होकर विष्ट है,
कुलपति सहित उन गुरुकुलों का ध्यान ही अवशिष्ट है।
बिकने लगी विद्या यहाँ अब, शक्ति हो तो क्रय करो,
यदि शुल्क आदि न दे सको तो मूर्ख रह कर ही मरो!
-: मैथिलीशरण गुप्त
स्टेशन से बाहर निकलते ही यह आंखे शहर का मूल्यांकन करने लगी | पहले कभी इस शहर को इतने ध्यान या प्रेम की निगाहों से न देखा था | पर आज जैसे हर छोटे से छोटे बदलाव को जान लेना चाहता था | कोई बेटी अपने मायके लोटी हो , लगभग लगभग भाव कुछ ऐसा ही था | अनौपचारिकता में भी औपचारिकता थी | परीवार व कुछ रिश्तेदारों से मिलना हुआ |
कुछ बोले " बेटा दुबले हो गए ",
तो कुछ परीक्षा का नतीजा जान लेना चाहते थे " तो फिर क्या लगता है ? इस बार हो जाएगा न ?"
और कुछ बोले " दिल्ली में तो प्रदूषण बहुत है , कैसे रह लेते हो ? "
न चाहते हुए भी सम्मान जनक उत्तर दिए गए | नहा धो कर जब अपने कमरे में लोटा, तो इच्छा हुई कि बचपन के मित्र आर्यन से कुछ बात की जाए | जब से परीक्षा की तैयारी आरंभ की थी , अधिकतर समय पुस्तकों के साथ गुजरने लगा था और साथी संगी , दोस्त , मित्र सब धीरे धीरे अलग होते गए| आज दोस्त के नाम पर केवल एक ही व्यक्ति मेरे संपर्क में था और वह है आर्यन | मेरे घर लौटने की उत्सुकता उसे भी थी, लंबे समय से मिले कहाँ थे | आर्यन को फोन किया | हाल चाल पूछा गया और शाम को मेरे घर मिलना तय हुआ | शाम होते ही परम मित्र ने दरवाजे पर दस्तक दी | भाई साहब अब देखने में एक पहलबान की तरह हो गए थे , लंबी चोड़ी छाती, लोहे जैसे हाथ , कद भी मुझसे लंबा हो चला था और इनके सामने मैं किसी कुपोषित बालक जैसा नजर आ रहा था | खैर दिल्ली में रहकर दुबला होना लाजमी ही है | कॉफी की चुस्की लेते हुए आर्यन बोला " भाई, आई हैव अ न्यूज़ , मैं एक बड़े से प्राइवेट स्कूल में पी. टी टीचर लग गया हूँ | अब पढ़ाई के साथ साथ कुछ एक्सपीरिएन्स भी हो जाएगा "|
" वाह , फिर तो मास्टर जी आपको देखकर बच्चे रोने लगते होंगे | आपकी दहशत से तो अनुशासन की गंगा बहती होगी ?"
" काश ऐसा होता , बस इतना सझल लो कि अब स्कूल वैसे नहीं रहे जैसे हमारे समय में थे, यू हैव नो आइडिया | "
बात सही भी थी | हम दोनों ही सरकारी स्कूल में पढे थे | आर्यन को शरारत करने की बजह से डांट, तमाचे खाने पढ़ते और मुझे उसके साथ मुफ्त में लपेट लिया जाता था | कभी कभी तो बिना किसी कारण ही यह प्रसाद मिल जाता था | | हमारे जैसे सरकारी स्कूल के छात्र , प्राइवेट स्कूल को वैसे ही देखते थे जैसे निम्न या मध्य वर्ग का आदमी उचे वर्ग को देखता है | क्लास , लक्ज़री, इनफ्रास्ट्रक्चर , फैसिलिटी , ये वो ... वाह वाह ... | श्रद्धा के भाव उमड़ आते थे | स्थिति तो यह थी कि सरकारी अध्यापक स्वयं अपने बच्चों को सरकारी स्कूलो में पढ़ा कर खुश नहीं थे | पर अब शिक्षा भी व्यापार की संज्ञा में सम्मिलित हो गई थी | जो संविधान हर भारतीय व्यक्ति को शिक्षा का अधिकार देता है , एक सुशिक्षित समाज की कल्पना करता है, वहीं शिक्षा के व्यापार से यह लक्ष्य धूमिल होता नज़र आता है काफी ठाहके भी लगे, इधर उधर की बाते हुई , दिल की बाते सांझा की गई, और जाते जाते आर्यन ने एक आमंत्रण दे डाला -
" तुम कल मेरे साथ स्कूल क्यों नहीं चलते ?... कल हाफ ड़े है | इसी बहाने मेरा स्कूल भी देख लेना |" विचार करने पर पाया की मेरे पास कुछ करने को नहीं है , समय है तो हाँ करने में क्या ही जाता है | तो यह निमंत्रण स्वीकार कर लिया गया, कल स्कूल जाना तय हुआ |
ठीक सुबह 6 बजे आर्यन मेरे घर के बाहर अपनी गाड़ी के साथ उपस्थित था | एक अध्यापक के आवेश में मैंने उसको पहली बार देखा | मित्र नौकरी लगने के बाद नव ऊर्जा का अनुभव कर रहा था | मैं खुश और चकित, दोनों था | चलते चलते फिर बाते होने लगी और अपने मित्र से उसके स्कूल का नाम पूछा | आर्यन ने एक अभिमान के साथ कहा " के॰ वाय॰ सी॰ अंतर्राष्ट्रीय स्कूल " के ॰ वाय ॰ सी मतलब ?
" नो यूअर कस्टमर "
उसने फिर कहा - मेरा मतलब " कशिश यादवेन्द्र चन्द्र अंतर्राष्ट्रीय स्कूल " |
इस भारी भरकम नाम का प्रभाव मुझ पर अच्छे से पड़ा | सुन कर लगा जैसे किसी स्वतन्त्रता सैनानी , प्रतिष्ठित नेता, समाज सुधारक, प्रसिद्ध धर्म गुरु , परोपकारी व्यापारी या किसी प्रतिभाशाली व्यक्ति के नाम पर स्कूल का नाम रखा गया है | मैंने इतिहास के सागर में डुबकी लगाई, पर यह नाम कहीं भी याद नहीं आया , न किसी पुस्तक में , न अखबार में | अंत: मुझे पूछना ही उचित लगा -" तो यह व्यक्ति काफी प्रतिष्ठित रहे होंगे | जिनके नाम पर इतने बड़े स्कूल का नाम रखा गया | कोई स्वतन्त्रता सैनानी थे क्या ? "
" अरे अरे ... कहाँ प्रतिष्ठित सोचे जा रहा है ... ' आर्यन मुस्कुराने लगा |
" स्कूल का संस्थापक एक बहुत बड़ा व्यापरी है , उसके तीन बच्चे है कशीश , यादवेन्द्र , चन्द्र .... समझे ? " इन शब्दों ने पहाड़ से नीचे गिरा दिया... मन ही मन सोचा, पत्नी को क्यों छोड़ दिया ? उसका नाम भी जोड़ देते ... ज्यादा अंतर्राष्ट्रीय लगता ...
बच्चों को कई बसों में भरकर स्कूल तक ले जाया जा रहा था जैसे मजदूरों को किसी फैक्ट्री में ले जाया जा रहा हो | हम भी एक विशाल, भवय महल, और पाँच तारा होटल जैसे दिखने वाली इमारत के पास रुके | वह लाल पत्थर से बनी दिवारे, विशाल द्वार, मुख्य द्वार पर विभिन्न फूल पौधे , और यूनिफ़ोर्म में खड़े दो द्वार पाल यह संकेत दे रहे थे कि यहाँ कुछ भी मुफ्त नहीं है| धन है, तभी प्रवेश करें | इमारत पर काँच की बड़ी बड़ी खिड़कियाँ एवं उसके ऊपर बड़े बड़े शब्दों में लिखा नाम " के॰ वाय॰ सी॰ अंतर्राष्ट्रीय स्कूल " ज़ोर ज़ोर से कह रहा था कि अगर कोई सच्चा स्कूल है तो बस यही है ... कहने को यह अंतर्राष्ट्रीय स्कूल था पर विश्व भर में यह इमारत इस स्कूल की एक लोती शाखा थी | शायद " अंतर्राष्ट्रीय " शब्द इनकी व्यापार नीति को दर्शाता था एवं आने वाले समय में यह स्कूल विद्या का व्यापार अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर करना चाहता होगा ... अत: अंतर्राष्ट्रीय स्कूल | प्रचार प्रसार हेतु स्कूल के गेट के पास एक बड़ी सी डिजिटल स्क्रीन लगा दी गई थी| विज्ञापन का यह आधुनिक माध्यम सच में असरदार था | आते जाते लोग, छात्र व उनके माता पिता अवश्य एक नजर इस पर ड़ाल देते थे| स्क्रीन पर कुछ घोड़ सवारी करते बच्चे, कुछ खेलते, कुछ नाचते, कुछ गाते, कुछ उछलते , कुछ उलटते आदि छत्रों को दिखाया जा रहा था| इन तसवीरों में बच्चे पढ़ाई को छोड़कर सब कुछ कर थे एवं यह विश्वास दिलाने का प्रयास किया गया था कि यदि आपके बच्चे का भविष्य उज्ज्वल है तो बस यहीं है... यहीं है| इन तसवीरों के अंत में लिखा आया "वी मेक लीडरज ऑफ टोमोरो, फ्युचर इज हियर " और फिर वही नाचते कूदते , सपाट अंग्रेजी बोलते तोते प्रार्थना आरंभ होने में कुछ समय था| आर्यन न सुझाव दिया कि चलो तुम्हें स्कूल दिखा दिया जाए | प्रवेश द्वार के पास ही भवय रिसेप्शन है| जहाँ " हेलो, के॰ वाय॰ सी॰ अंतर्राष्ट्रीय स्कूल, हाउ मेय आई हेल्प यू " का स्वर बार बार सुनने को मिलता था, भवन के केंद्र में माँ सरस्वती की एक प्रतिमा जो यह भरोसा दिलाती थी कि यह कोई होटल नहीं पर सच में एक विद्या मंदिर ही है | मुख्य हाल के दाई ओर प्रिंसिपल जी का मोहित कर देने वाला कक्ष था, इस कक्ष में भी दो बड़ी बड़ी स्क्रीन , एक में स्कूल के दर्जनों सीसी टीवी कैमरों को देखा जा सकता था और दूसरी स्क्रीन में वही विज्ञापन चल रहा था जो मुख्य द्वार पर था | इसके बाद म्यूजिक रूम, कम्प्युटर रूम, मेडीटेशन व योग रूम, आर्यन का अपना स्पोर्ट रूम, स्टाफ रूम , कैंटीन , मल्टिमीडिया रूम , क्रीएटिविटि रूम, साइन्स रूम ... और भी कई सारे रूम ... और रूम ही रूम... स्कूल के अपने कुछ खेल कूद के मैदान भी थे | सब कुछ देख कर समझ आ रहा था कि भारी निवेश किया गया है और वसूलियत भी भारी भरकम की जा रही होगी |एक सामान्य प्रार्थना सभा के बाद, मैं आर्यन के स्पोर्ट्स रूम में जा बैठा और वह किसी कक्षा को संभालने, अनुशासन व कानून को स्थापित करने के लिए स्कूल के दोरे पर निकल पड़ा | कुछ देर बाद ही एक अध्यापक भुनभुनाते, क्रोधित रूप में प्रवेश करते है, मुझ अपरिचित को देखते ही शालीनता का नकाब डालते है, और मुस्कुराहट के साथ पूछते है " माफ कीजिएगा , आर्यन सर कहाँ है ? "
" वह अभी बाहर गए है , शायद आते ही होंगे "
" और आप ? "
"मैं उनका मित्र हूँ आज वैसे ही उनके साथ आ गया "
" वाह अच्छा किया , अगर वह आए तो कहिए कि मिस्टर गोयल आए थे, मुझसे जरूरी मिले | " यह बोलकर वह चले गए |
काफी देर हुई पर मित्र आए नहीं, सोचा कि शांती स्थापना , अनुशासन की रक्षा जैसे पवित्र कार्यों में मित्र की सहायता की जाए और इस उद्देश्य से मैं भी बाहर निकल पड़ा | मेरा मित्र पीटी टीचर है अर्थात उनका मुख्य कार्य है छात्रों का खेल कूद के माध्यम से विकास करना , प्रतिभाशाली छात्रों में भविष्य के खिलाड़ियों का निर्माण करना, खेल कूद संबंधी ज्ञान विद्यार्थियों को देना ... पर यहाँ उनका मुख्य कार्य है किसी अध्यापक की अनुपस्थिती में कक्षा में उपस्थित होना , बच्चों को एक कतार में चलवाना , बच्चों के झगड़ों को सुलझाना और अंस्कूल की आन वान शान बनके रक्षा करना | इस बात का ध्यान रखा गया था कि बच्चों की भावना किसी भी रूप से आहित न हो| अत: अध्यापकों के लिए यह अनिवार्य था कि सत्कार, सम्मान व अहिंसा के साथ छात्रों से व्यवहार किया जाए | चलते चलते एक कक्षा से आवाज सुनी, कोई अध्यापक विद्यार्थी को डांट रहा था
" सुशांत, आप प्लीज होम वर्क करके आया करें , आप प्लीज पढ़ाई पर ध्यान दे ... आप प्लीज दूसरे स्टूडेंट्स को तंग न करे ... आप प्लीज ... आप प्लीज .... आप प्लीज... " आर्यन की खोज में मैं फिर रिसेप्शन पर आ पहुंचा | वही पास में बैठने के लिए महंगे सोफ़े भी रखे गए थे | सोचा यहीं कुछ देर इंतजार किया जाए | कुछ पल बाद वहाँ एक अध्यापिका आ पहुंची , वह भुनभुनाती हुई, क्रोधित आवेश में आकर रिसेप्शन पर बैठी महिला से कहने लगी -
" आज तो फिर देख ही लेने दो , मिस्टर गोयल समझते क्या है अपने आप को ,... सीनियर है तो क्या गुंडा गरदी करेंगे , वो जानते नहीं मैं कौन हूँ ... मिस रचना नाम है मेरा ... बहुत देखे है ऐसे गोयल शोयल '"
" मुझे तो लगता है वे जान बुझ कर आपके साथ ऐसा करते है, अपने गुट के अध्यापकों को तो वह कुछ कहते नहीं " उस महिला ने आग में घी डालने का काम अच्छे से किया, जैसा की हर कर्मचारी का कर्तव्य होता है |
" हाँ, दुश्मनी तो मेरे जैसे सच्चे अध्यापकों से है उनको, जो निष्ठावान है और स्कूल की भलाई चाहतें है "
" तो वाइस प्रिन्सिपल ने क्या कहा ?" महिला ने गंभीरता के साथ पूछा |
" वे भी मिस्टर गोयल की पढ़ाई बाते ही दौहराने लगे, कहते आपको अवकाश की क्या जरूरत है ? पिछले ही हफते आपने दो छुट्टी ली थी| आप बच्चों की पढ़ाई के बारे में सोचती है या नहीं ? "" मैं समझ गई कि ये मिस्टर गोयल के पक्ष में ही है, भ्रष्ट होने लगे है सभी "
भ्रष्ट शब्द सुनते ही मुझे एहसास हुआ कि यहाँ भी स्वार्थ की क्रान्ति पनप रही है, जिसका बिस्फोट कभी भी हो सकता है | बेहद आसान है दूसरे को भ्रष्ट बोलकर अपना पल्ला झाड लेना | स्वयं को गांधीवादी दर्शाने के लिए - " पानी सर से ऊपर गया तो मैं हड़ताल करवा दूँगी " जैसी बातों पर, वह अध्यापिका उतर आई | इतने में ही दो और अध्यापक कक्षा से बाहर निकल, श्रीमति रचना को देख उनकी ओर चले आ| देखने से ही प्रतीत हो रहा था कि ये अध्यापक भी मिस रचना के गुट के हैं | उनमें से एक बोला -
" मिस रचना आज मैं भी उप प्राचार्य के पास शिकायत करने जा रहा हूँ | मिस्टर आर्यन से जब कहा कि आप प्लीज मेरी क्लास को देख लीजिए, मेरी चाय का समय हो गया है तो सीधा मुँह बोले- देखिए, मुकेश सर मैं पहले ही दो क्लासों को देख रहा हूँ , आप किसी और से क्यूँ नहीं कहते " उन्होने मुँह टेढ़ा करके नकल निकालते हुए कहा | " अरे, ये भी तो उस गोयल के गुट का है, मैंने उसकी शिकायत कोरडनेटर से क्या कर दी, तो उप प्राचार्य को बोलता मिस रचना चुगल खोर है... अरे, मैं तो केवल अपने काम से काम रखती हूँ "
दूसरे अध्यापक ने भी हाँ भरते हुए कहा "अरे इन सबके बाप तो वो जैनेन्द्र सर हैं, खुद तो वह दिन भर कम्प्युटर लैब में ए॰सी के समाने बैठे रहते है और मीटिंग में कहते हैं कि मेरी ड्यूटि छुट्टी के समय बाहर गेट पर लगा दी जाए ... वे यहाँ के दादा बनते है |"
देखते ही देखते माहोल गर्माने लगा | अध्यापिका मिस रचना ने टीचर का चोला छोड़, एक क्रांतिकारी के आवेश में उतरी | सबकी बातों पर चिंता व्यक्त करते हुए उन्हें एहसास हुआ कि आज क्रांति का समय आ गया है | आज ही " अंग्रेजों भारत छोड़ो , इंकलाब जिंदाबाद, करो या मरो , मैं अपनी झांसी नहीं दूँगी " कहने और जीने का समय है | मिस्टर गोयल का साम्राज्य आज तहस महस करना ही होगा| आंखो में क्रांति की ज्वाला लिए और अपने गुट के सभी सदस्यों को एकत्रित कर उन्होने प्राचार्य के कमरे पर हमला बोल दिया |बच्चों को राजनीति से परिचित करवाने के लिए स्कूल में भी राजनीति का खेल खेला जा रहा था | दो पार्टी थी और दो मुख्य नेता - मिस रचना और मिस्टर गोयल | सत्ता का संघर्ष जारी था| कुछ ही देर में प्राचार्य ने मिस्टर गोयल के गुट को अपने ऑफिस में बुलाया और ज़ोर ज़ोर से बहस होने लगी | मैं कभी संसद में नहीं गया | पर आज उसका एक लघु रूप मेरे समक्ष प्रस्तुत था | इस रोचक घटना का साक्षात गवाह बनने के लिए मैं भी अध्यापकों की भीड़ के साथ प्राचार्य के ऑफिस में जा पहुंचा| यहाँ स्थिति कुछ अलग थी | स्कूल अदालत में तब्दील हो गया था| मिस रचना और मिस्टर गोयल अब अपनी अपनी पार्टी के वकील बन गए थे | प्राचार्य जज की तरह रह रह कर दोनों पक्षों के आरोपों और दलीलों को सुन रहे थे | 60 - 65 की उम्र के वे प्राचार्य और उनके सफ़ेद बाल शायद खुद को कोस रहे थे | उनके टेबल पर रखी एन्टी डिप्रेशन की गोलियां देख, मेरे मन में उनके प्रति कुछ सहानुभूति जाग आई | इतने में ही मिस्टर गोयल ने कठोर शब्दों में कहा" प्राचार्य जी, हमें भी मिस रचना और उनके गुट से दिक्कत है , काम चोरी की मिसाल है ये, पर हम तो आपके पास ऐसे भड़के हुए शिकायत लेकर कभी नहीं आए " " अरे जाओ जाओ, अपराध करने वाला कभी खुद पुलिस के पास जाता है क्या ? " मिस रचना ने दहाड़ कर कहा |
" अच्छा जी , और आप जो हर तीसरे दिन छुट्टी ले लेती है.. पर सैलरी आपको पूरी लेनी है.... भष्टाचारी |"
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
It is funny and equally ironic. . . Good work
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