अक्सर लोगों को चाँद हसीन लगता है ,
लेकिन सूरज की तो अपनी एक अनोखी दास्ताँ है ।
अजब है उसका उगना और ढलना ,
किसी को वह उगते हुए पसंद है ,
किसी को वह ढलते हुए ,
और किसी को वह हर पल पसंद है ।
वह सुबह का आगाज़ करते हुए निकलता है ,
और साँझ की खातिर ढल जाता है ।
गंगाघाट पर सुबह-शाम आरती के साथ अपनी हाज़िरी लगाता है ,
तो दोपहर में अपने तेज़ को झरनों पर डालकर उनको सुनहरा बनाता है ।
हर दिन कभी हमारे आगे-पीछे ,
कभी हमारे दायें-बायें ,
और कभी हममें ही छुप कर ,
हमारी परछाई को छुपा लेता है ।
कभी छुप जाता है बादलों में ,
मानो अपनी उदासी को छुपा रहा हो ।
और कभी चमकता है अपने शौर्य के साथ ,
मानो अपना सर्वस्व तेज़ दिखा रहा हो ।
बारिश की बूँदों से अपने तेज़ को गुजार कर ,
सात रंग आसमां में बिखेरता है ,
और साँझ होते ही खुद ढल कर ,
चाँद का स्वागत करता है ।
नहीं बदलता है, अपनी कलाओं को वक़्त के साथ ,
ये सूरज है चाँद नहीं, जो बदल जाये वक़्त के साथ ।
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