ठिठुरन भरी ठंड

मौसम तो प्रकृती का व्यवहार है । प्रकृती हमेशा से ही कलम को गति देने वाला विषय रहा है। हम सब जानते हैं कि मौसम में बदलाव के वैज्ञानिक कारण होते हैं परंतु कलम उसका मानवीकरण कर उसके साथ अठखेलियां करती है ।

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Aarti Kushwah
Aarti Kushwah 19 Jan, 2024 | 1 min read

नवंबर में आती हो,

दिसंबर में पैर जमाती हो,

जनवरी में इतराती हो,

और फरवरी में मुरझा जाती हो,

खुद तो आती हो,

ठिठुरन भी संग लाती हो,

भेदभाव नहीं करतीं,

कौन ,कहाँ, कैसा है ?

पर भूल जाती हो,

किसी को बस छू कर निकल जाती हो,

तो किसी की हड्डियां जमा जाती हो,

ना जाने इस समय इतना क्यों इठलाती?

दम है तो जून में क्यों नहीं आती?

सूरज को भी आँख दिखती हो,

सफेद चादरों से उसे छुपाती हो,

ना जाने क्यों नादान हो?

तुम तो सिर्फ कुछ महिनों की मेहमान हो,

दरख्वास्त है हमारी सूरज को रिहा करो,

बेहाल है जन-जीवन कुछ तो दया करो,

अतिथि हो हमारी,

स्वागत है तुम्हारा,

खुले हैं द्वार हमारे,

हर साल समय पर आना ।




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Aarti Kushwah

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Comments

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  • Suraj · 1 year ago last edited 1 year ago

    Behtreen 🤙🏻

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